Netaji Bose साइबेरिया में मारे गए थे; गुमनामी बाबा नेहरु सरकार का रचा गया सिद्धांत था: जीडी बक्शी

Netaji Bose Gumnami Baba

Netaji Bose और गुमनामी बाबा के बारे में मेजर जनरल (डॉ) गगनदीप बख्शी कहते है, “मैं गुमनामी बाबा सिद्धांत पर विश्वास करना चाहता हूं पर मुझे डर है कि सबूत पर्याप्त नहीं है। हम निश्चित हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस मंचूरिया पहुंचे। स्मर्श के विक्टर ओबाकुमोव और कॉल उतरेखिन ने उनके आने और सरेंडर को संभाला। वहां से उन्हें साइबेरिया के ओमनस्क ले जाया गया जहां सोवियत सरकार युद्धकाल में चली गई थी और आईएनए ने निर्वासन के दौरान भारतीय सरकार के दूतावास की स्थापना की थी।”

 

“यहां से Netaji Bose ने ३ प्रसारण किये ३ अलग अलग दिनों में – २६ दिसंबर १९४५, ०१ जनवरी १९४६ और १९ फरवरी १९४६। ये कोलकाता में बंगाल गवर्नर के कार्यालय में रिकॉर्ड किए गए। अंग्रेजों के पास अब सबूत थे कि नेताजी रूस में थे। उन्होंने नवंबर १९४१ और मार्च १९४४ की गुप्त संचालन संधियों में दो खुफिया सहयोगों का आह्वान किया। स्टालिन ने नेताजी बोस को गिरफ्तार कर साइबेरिया भेज दिया था। शायद ब्रिटिश गुप्तचरों को साइबेरिया में बोस को पूछताछ करने की आजादी मिली।”

 

“पूछताछ के दौरान अंग्रेजो ने Netaji Bose को भयंकर यातनाऐं दी। इस सब को छुपाने के लिये जापानी धोखे की योजना को सही बताया गया और बोस को मृत घोषित कर दिया गया। नेहरु की सरकार ने पूरी तरह से इस विश्वासघात प्लान से जुड़कर बोस को यातना देने में और उन्हें साइबेरिया में मारने की योजना में साथ दिया। नेहरु शासन के एक अति लोकप्रिय प्रतिद्वंदी को हटा दिया गया था। ओबाकुमोव और कॉल उतरेखिन को बाद में सोवियत एजेंटो द्वारा गोली मार दी गई।”

 

“हमारी आईबी, हमारे उस समय के सरकारी अफसर सभी सहयोगी थे। यही कारण है कि वे कभी सत्य को बाहर आने नहीं देंगे। संभवत: आईबी ने भारतीय जनता को खुश करने और उनके निशानों को गुप्त रखने तथा जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए गुमनामी बाबा का सिद्धांत तैयार किया था। Netaji Bose वह आदमी था जिसने हमें हमारी आजादी दी थी। उनके साथ जो किया गया था, भयानक था और हम सब समान रूप से हमारे सामूहिक चुप्पी के कारण दोषी हैं। क्या गुमनामी बाबा की कहानी आईबी द्वारा उछाली गई थी, जो हम सभी भावनात्मक कारणों से विश्वास करना चाहेंगे..”

 

Netaji Bose ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इतिहासकारों के एक वर्ग ने निहित स्वार्थों और शासकों के लिये अपनी स्वामीभक्ति दिखाते हुये पूरी तरह से यह साबित करने की कोशिश की है कि भारत ने अपनी स्वतंत्रता अहिंसा और सत्याग्रह के रास्ते से प्राप्त की थी और बल और हिंसा की उसमें कहीं कोई भूमिका नहीं थी। यह एक बहुत बड़ा झूठ या यूँ कहिये कि इतिहास के साथ खिलवाड़ है। आज़ाद हिंद फौज़ के आधिकारिक इतिहास के अनुसार फौज़ में कुल 60,000 जवान और अधिकारी थे। इनमें से 26,000 स्वतंत्रता के लिये युद्ध में मारे गए थे। क्या यह अहिंसा थी?

 

आज भारत को एक राष्ट्र के रूप में Netaji Bose के बारे में सच का सामना करने की जरूरत है। बोस भारतीय राष्ट्रवाद के प्रतीक थे। आज, हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर भारत में चल रही राष्ट्रविरोधी साज़िश की पृष्ठभूमि में उनकी विरासत को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। देशद्रोह और विश्वासघात भारत में पनप रहा है। यही कारण है कि हमें बोस के प्रबल राष्ट्रवाद को पुनर्जीवित करने की जरूरत है।

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Manoshi Sinha is a writer, history researcher, avid heritage traveler; Author of 8 books including 'The Eighth Avatar', 'Blue Vanquisher', 'Saffron Swords'.
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