गीता: राष्ट्रहित में सर्वश्व बलिदान का आवाहन या स्वर्ग का मार्ग
गीता महाभारत के युद्ध के समय ऐन युद्ध के मैदान में अर्जुन द्वारा युद्ध के प्रति अनिच्छा प्रकट करने के कारण, युद्ध में पांडव पक्ष की पराजय निश्चित जानकार योगिराज भगवन श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को युद्ध करने हेतु प्रेरित करने के उद्देश्य से दिया गया उपदेश है या फिर यों कहें की अर्जुन को दी गयी शिक्षा है, ज्ञान है, जिस ज्ञान के फलस्वरूपअर्जुन ने न केवल युद्ध करना स्वीकार किया वरन युद्ध में सम्पूर्ण विजय एवं शत्रु के सर्वनाश हेतु कृतसंकल्प भी हुए |
जब अर्जुन ने भांति भांति की शंकाए प्रकट की तो श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा की तुम कर्म करो एवं मुझे समर्पित कर दो, साथ ही साथ भगवान ने अर्जुन को अपने विराट स्वरुप के दर्शन करवा कर यह भी समझाया की विश्व में जो सर्वश्रेष्ठ है वह मेरा ही प्रतिरूप है |
जब भगवान् स्वयं सृष्टी में सर्वश्रेष्ठ हैं तो उनको समर्पित किया जाने वाला कर्म यदि सर्वश्रेष्ठ से कम होगा तो क्या भगवान् उसे स्वीकारेंगे या फिर क्या सर्वश्रेष्ठ से कम भगवान को समर्पित करने योग्य भी है ?
तो फिर यह श्रेष्ठ कर्म क्या है जिसे भगवान् चाहते हैं की अर्जुन एवं उनके भाइयों द्वारा किया जाकर उनको समर्पित हो ,श्रेष्ठ कर्म, धर्म कर्म, कृष्ण का कर्म,गीता का कर्म आखिर यह सब है क्या ?
कृष्ण अपनी शिक्षा द्वारा अर्जुन से क्या चाहते हैं ?
किसी भी शिक्षा की सार्थकता शिष्य या शिष्यों द्वारा शिक्षक के मनोनुकूल परिणाम प्राप्त होने से सिद्ध होती है , यदि जो परिणाम शिक्षक चाहता है वह परिणाम शिष्य ने प्राप्त कर लिया तो शिक्षण एवं शिक्षक की सार्थकता स्वयं ही सिद्ध हो जाती है , यहाँयह विचार किया जाना चाहिए की शिक्षक,शिक्षा, शिष्य एवं परिणाम, इन सब का गीता में क्या परिचयहै :
शिक्षक भगवान् श्री कृष्ण हैं, शिक्षा है युद्ध करने की , शिष्य है अर्जुन एवं उनके भाई तथा आकांक्षीत परिणाम है युद्ध में अंतिम विजय एवं शत्रु का सर्वनाश |
मतलबगीताका सन्देश स्पष्ट है , जो तुम्हारी बहु बेटी पर हाथ उठाये उसका हाथ उखाड़ दो, जो जांघ दिखाए उसकीजांघें तोड़ दो,जो तुम्हारा या तुम्हारे परिवार, समाज का रक्त बहाए उसका रक्त पी जाओ, जो तुम्हारी तरफ आँख उठाये उसकी आँखे फोड़ दो, जो बेईमानी और छल करे उसको बेईमानी एवं छल से जीतकर उसका सर्वनाश सुनिश्चित करो|
गीता यथा योग्य , शठे शाठ्यंसमाचरेत का सन्देश है, जो जैसा शत्रुतापूर्ण व्यवहार करे उसे उसी के व्यव्हार के अनुरूप कठोरतम दंड, यही तो गीता है, दुष्ट को वीरता से, बेईमान को बेईमानी से एवं छली की छल से, परास्त करो एवं परम वैभव की प्राप्ति करो|
गीता में यह भी सन्देश है की तुम स्वयं कमजोर हो, मानसिक बल से हीन हो, तुम्हारा समय खराब नहीं है क्योंकि वक्त तो उनका दास होता है जो वक़्त को झुका सकते हैं|
गीता में यह भी सन्देश स्पष्ट है की जिस शूरवीर परिवार,समाज या राष्ट्र का शौर्य सोया हुआ है उसकी जीत असंभव है, ऐसा समाज, राष्ट्र, स्वयं से हारा हुआ है एवं वह राष्ट्र नष्ट होकर रहेगा |
क्याकृष्ण अपेक्षित परिणाम प्राप्त कर पाए, क्या कृष्ण अर्जुन एवं उनके भाइयों को दी गयी शिक्षा से मिले परिणाम से संतुस्ट हुए ? आज जन जन पूरे विश्व में यदि गीता पढ़ता है तो निश्चित ही यह कहा जा सकता है की कृष्ण की शिक्षा सार्थक हुई |
जिस समाज में विद्वानों द्वारा गीता में युद्ध के अतिरिक्त अन्य ज्ञान, शांति, अहिंसाआदिकोढूंढा जाता हैउस समाज का वीर्य कभी चेतन नहीं हो सकता, गीताका सन्देश स्पस्ट है अपने एवं अपने समाज, संस्कृति एवं राष्ट्र की रक्षा के लिए लड़ो एवं तब तक लड़ो जब तक तुम अंतिम एवं सम्पूर्ण विजय नहीं प्राप्त कर लो | योगेश्वर कृष्ण ने स्पस्ट कहा एवं बार बार कहा सर्वश्रेष्ठ करो, शत्रु का सर्वनाश करो एवं सब मुझे समर्पित कर बिना किसी ग्लानी के | जब तुमने अपने समस्त कर्म मुझे समर्पित कर दिए तो न पाप हुआ न पुण्य |
गीता में जो लिखा है उसे खोजो, समझो और जीवन में उतार लो, अभी नहीं तो कभी नहीं –
जिस गीताके उपदेश ने अट्ठारह अक्षोहिनी सेना के विनाश का मार्ग प्रशस्त कर दिया उस गीता में युद्ध एवं अंतिम विजय के अलावा कोनसा ज्ञान हम खोज रहे हैं , १००० वर्षों की गुलामी भी यदि अभी तक गीता के ज्ञान के प्रति हमारी आँखे नहीं खोल पाई तो कब इस सोये हुए राष्ट्र की नींद टूटेगी ? अरे पांडवों के तो १२ वर्षों के वनवास ने ही गीता के ज्ञान की भूमिका रच दी थी , १००० वर्षों की गुलामी के बाद, ४० करोड़ से ज्यादा भारतवंशियों के कत्लेआम, बलात धर्मपरिवर्तन,सम्पूर्णज्ञान एवं इतिहास के नष्ट कर दिए जाने के षड्यंत्रों केबाद,अब भी यदि युद्ध करने का तुम्हारा मनोबल नहीं है तो भूल जाओ कृष्ण को, कभी नहीं आयेगा, क्योकि कृष्ण तो तभी आएंगे जब युद्धभूमि में तुम दुविधा में होगे, जहाँ दुविधा वहां कृष्ण, जहाँ कृष्ण वहीँ गीता, जहाँ गीता वहां जीत अन्यथापोरुशहीन समाजएवं उसके विडाल गीत, गातेरहो, सम्पत्ति अर्जित करों, वैभव अर्जित करों और एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाओ सब कुछ उनके लिए छोड़कर जिन्होंने तुम्हारी आनेवाली पीढ़ियों का सर्वनाश करने की कसम खायी है, जो तुम्हारी संपत्ति एवं बहु बेटियों को केवल अपने भोग का साधन मानते रहे है एवं जिन्होंने इसे बार बार प्रमाणित भी किया है |
तालियाँ बजाकर, अपना सम्पूर्ण योवन हरेराम हरे कृष्ण गाते गाते शांति का सन्देश खोजने में पुरुषार्थ विहीन जीवन व्यतीत करने से, आठ समय भोग एवं भांति भांति का श्रृगारसेआजन्म संघर्ष करने वाले कृष्ण का ज्ञान प्राप्त होने की कोई गारंटी नहीं है किन्तु , हाँधर्म की दुकानदारी चल निकलेगी इस बात के गारंटी अवश्य है|
कृष्ण आखिर है कौन ? गोपियों संग रास रचाने वाला, राधा संग प्रेम की पींगे बढ़ने वाला, मुरली मनोहर, सोलह हज़ार रानियों का पति, पांच पांच पटरानियों के साथ जीवन के सम्पूर्ण सुखों का भोग करने वाला लीलाधर या अपने जन्म से भी पहले कारागृह की यातना सहता वह जीवट का स्वामी जिसने कभी अपनी मां का दूध एवं आँचल नहीं जाना, जिसनेशैशव से लेकरबाल्यकाल तक अपने मामा के षड्यंत्रों का सामना करते – करते योवन के दर्शन किये एवं जिसका कोई दिन स्थानीय अथवा राष्ट्रीय समस्याओं से जूझने के अलावा नहीं बीता, जिसनेदुश्मनों से प्रजा की रक्षा करने के लिए मूल स्थान त्याग कर नए राज्य का निर्माण किया, इस बीच न जाने कितने युद्ध किये, लान्छन झेले, फिर अपनी बुआ के नष्ट हो चुके साम्रज्य की पुनः प्राप्ति एवं अपनी बहिन के पति एवं उसके भाइयों के सोये हुए आत्मबल को जगाने हेतु स्वयंकेमान अपमान की परवाह न करते हुए प्रयत्नशील कृष्णकोकब हमने जाना हमने तो कृष्ण को कीर्तन एवं नित नए प्रसादम एवं वस्त्रों से सजा दिया है|
नए नए सिद्धांत बना दिये गए हैं गीता के नाम पर, गीता तो खो गयी एवं टीकाकार पूजने लग गए, कृष्णपत्थर की मूर्ति बन गए एवं टीकाकार पूजित होकर कृष्ण के नाम पर उपदेशों की दूकान चलने लग गए, कोई मूल समझाता है, कोई भाव समझाता है, कोई स्वरुप समझाता है ,विभिन्न दर्शनों का एक बाज़ार सा लग गया है गीता के नाम पर जिसने गीता के मूल सिद्धांत एवं ज्ञान को केवल ढकने का कार्य किया है |
पूरी तैयारी, सर्वस्व अर्पण , बिना संशय दुश्मन का सर्वनाश, यही गीता है बाकी सब टाइम पास या धन्देबाजों की दूकान है, या फिर आत्मसम्मान से रहित समाज का नपुन्संक चेहरा |
आज मानो या कल या फिर इस राष्ट्र के टुकड़े टुकडे होने के बाद, मर्जी आपकी |