पुनर्वसु नक्षत्र की मुख्य घटनायें

Punarvasu

(१) अदिति युग-शान्ति पाठ में कहा जाता है-अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् (ऋग्वेद १/८९/१०, अथर्व ७/६/१, वाजसनेयि सं. २५/२३, मैत्रायणी सं. ४/२४/४)।

 

इसका एक अर्थ है कि पुनर्वसु नक्षत्र (जिसका देवता अदिति है) से वर्ष का अन्त तथा नये वर्ष का आरम्भ होता है। आज भी जब सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र में होता है तब जगन्नाथ की रथ यात्रा या विपरीत यात्रा में से कम से कम एक होती है। अन्य अर्थ है कि जब अदिति का युग था तो पुनर्वसु नक्षत्र में विषुव संक्रान्ति तथा वर्ष का आरम्भ होता था। उनके कनिष्ठ पुत्र या सन्तान वामन को ही विष्णु कहते थे।
विक्रमादित्य काल (विक्रम संवत् ५७ ई.पू. से) में अश्विनी नक्षत्र या मेष आरम्भ में विषुव संक्रान्ति होती थी। उससे प्रायः १९०००-१८००० वर्ष पूर्व पुनर्वसु में विषुव संक्रान्ति होनी चाहिये। वैवस्वत मनु के १०८०० वर्ष बाद (सत्य + त्रेता+द्वापर) का अन्त ३१०२ ई.पू. में हुआ। उससे १० युग = ३६०० वर्ष पूर्व तक असुरों का प्रभुत्व था। अर्थात् १७५०० ई.पू. से पहले कश्यप-अदिति का काल होना चाहिये।

 

सख्यमासीत्परं तेषां देवनामसुरैः सह । युगाख्या दश सम्पूर्णा ह्यासीदव्याहतं जगत्॥६९॥
दैत्य संस्थमिदं सर्वमासीद्दशयुगं किल ॥९२॥ अशपत्तु ततः शुक्रो राष्ट्रं दश युगं पुनः ॥९३॥
ब्रह्माण्ड पुराण (२/३/७२)
युगाख्या दश सम्पूर्णा देवापाक्रम्यमूर्धनि । तावन्तमेव कालं वै ब्रह्मा राज्यमभाषत ॥ वायु पुराण ( ९८/५१)

 

(२) परशुराम जयन्ती-निर्णय सिन्धु, द्वितीय परिच्छेद के वैशाख मास वर्णन में भार्गवार्चन दीपिका को उद्धृत कर कहा है कि स्कन्द पुराण तथा भविष्य पुराण में परशुराम जन्म तिथि दी गयी है। स्कन्द पुराण में परशुराम जन्म के विषय में अध्याय (६.१६६) में उल्लेख है। वहां संक्षेप में उनके पिता जमदग्नि के जन्म समय का उल्लेख श्लोक ४४ में है, पर उसके बाद परशुराम जन्म की ग्रह स्थिति या तिथि का वर्णन नहीं है। सम्भवतः यह कमलाकर भट्ट के समय के स्कन्द पुराण में था।

 

स्कन्द पुराण-वैशाखस्य सिते पक्षे तृतीयायां पुनर्वसौ। निशायाः प्रथमे यामे रामाख्यः समये हरिः। स्वोच्चगैः षड्ग्रहैर्युक्ते मिथुने राहु संस्थिते। रेणुकायास्तु यो गर्भादवतीर्णो हरिः स्वयम्॥
भविष्य पुराण-शुक्ला तृतीया वैशाखे शुद्धोपोष्या दिनद्वये। निशायाः पूर्वयामे चेदुत्तरान्यत्र पूर्विका॥
लक्ष्मीनारायण संहिता (१/२६८)-
वैशाखस्य सिते पक्षे तृतीयायां पुनर्वसौ। जमदग्नि गृहे प्रादुरासीत् परशुधृक् हरिः॥२२॥

 

यहां समस्या है कि वैशाख शुक्ल ३ को पुनर्वसु नक्षत्र सम्भव है या नहीं। तृतीया के दिन सूर्य चन्द्र का अन्तर ३६ अंश से कम होगा। शुक्ल प्रतिपदा से अमावास्या के बीच सूर्य का वृष राशि में प्रवेश होना चाहिये अर्थात् ३० अंश पर होना चाहिये। यदि प्रतिपदा दिन ही वृष संक्रान्ति है तो उस दिन चन्द्र ४२ अंश तक होना चाहिये। तृतीया अन्त तक सूर्य ३३ अंश पर तथा चन्द्र ८२ अंश तक हो सकता है। ८० से ९००२०’ तक पुनर्वसु होने से तृतीया दिन रात्रि में जब गणित के अनुसार चतुर्थी का आधा भाग बीत चुका हो, पुनर्वसु नक्षत्र आरम्भ हो जायेगा।

 

माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मणों के इतिहास-लेखक, श्रीबाल मुकुंद चतुर्वेदी के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म ५१४२ वि.पू. वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था। इनका जन्म समय सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। ५१४२ विक्रमपूर्व (५१९९ ई.पू.) वैशाख शुक्ल ३, सन्ध्या ८ बजे-लग्न तुला, सूर्य मेष १००, चन्द्र-पुनर्वसु नक्षत्र, मंगल २९८०, बुध १६५०, गुरु ९५०, शुक्र ३५७०, शनि २०००। यहां बुध उच्च का नहीं हो सकता क्योंकि वह सूर्य से २७ अंश से अधिक दूर नहीं हो सकता। परशुराम देहान्त के बाद कलम्ब वर्ष आरम्भ हुआ था जो केरल में आज भी प्रचलित है। उसके अनुसार तथा दिव्य वर्ष के १९ वें युग गणना के अनुसार उनका देहान्त ६१७७ ई.पू. में हुआ था।

 

(३) राम जन्म-वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड सर्ग १८ में राम जन्म समय की ग्रह स्थिति इस प्रकार दी है-
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट् समत्ययुः। ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ॥८॥
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु। ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥९॥
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम्। कौशल्याजनयद् रामं सर्वलक्षण संयुतम्॥१०॥

 

= (पुत्र कामेष्टि= अश्वमेध) यज्ञ के ६ ऋतु बाद १२वें मास में चैत्र नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र (जिसका देवता अदिति है) में जन्म हुआ जब ५ ग्रह स्व (स्थान) या उच्च के थे। जब कर्क लग्न, बृहस्पति और चन्द्र का एक साथ उदय हो रहा था, सभी लोकों से वन्दित जगन्नाथ का भी उदय हुआ तथा कौशल्या ने सभी लक्षणों से युक्त राम को जन्म दिया।

 

अगले दिन पुष्य नक्षत्र, मीन लग्न में भरत का तथा उसी दिन अश्लेषा नक्षत्र में लक्ष्मण-शत्रुघ्न का जन्म हुआ जब सूर्य उच्च (१००) पर थे-
पुष्यो जातस्तु भरतो मीनलग्ने प्रसन्नधीः। सार्पे जातो तु सौमित्री कुलीरेऽभ्युदिते रवौ॥१५॥

 

अतः राम जन्म के समय सूर्य ९० अंश पर, चन्द्र, गुरु, लग्न ९०००’१”, तथा चैत्र नवमी (सौर मास की) थी। गुरु और सूर्य प्रायः उच्च पर थे (इनका उच्च १००, ९५० हैं), अन्य ५ ग्रह पूर्ण उच्च के थे-मंगल २९८०, शुक्र ३५७०, शनि २०००। चन्द्र का उच्च ५८० है पर उसका स्थान ९०० दिया है जो उसका अपना स्थान है। है। बुध का उच्च १६५० है पर यह सूर्य से २८० से अधिक दूर नहीं हो सकता। अतः बुध राहु-केतु की गणना करनी होगी।

 

इसमें एक कठिनाई आती है कि चैत्र शुक्ल ९ को पुनर्वसु नक्षत्र नहीं हो सकता। मेष के आरम्भ से पुनर्वसु के अन्त तक ९३०२०’ होते हैं। ८ तिथि पूर्ण होने के लिये सूर्य चन्द्र का अन्तर ८ x १२ = ९६ अंश होना चाहिये। अतः शुक्ल नवमी ९६ अंश से शुरु होना चाहिये। नवमी में पुनर्वसु नक्षत्र तभी हो सकता है जब चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सूर्योदय के तुरत बाद समाप्त हो और उस दिन सूर्य मेष में प्रवेश करे, तबी वह चैत्र मास हो सकता है। उसके ७ दिन बाद नवमी तिथि को सूर्य ९ अंश पर तथा चन्द्र ९३०२०’ से १०६०२०’ के बीच होगा। राम का जन्म ११-२-४४३३ ई.पू., रविवार, १०-४७-४८ स्थानीय समय पर हुआ। सूर्योदय ५-३५-४८, सूर्यास्त १८-२८-४८ था। अयनांश १९-५७-५४, प्रभव वर्ष था। अन्य ग्रह बुध २१०, राहु १२०४’४६”। श्री नरसिंह राव की पुस्तक- Date of Sri Rama, १९९०, १०२ माउण्ट रोड, मद्रास के अनुसार अन्य ८८ तिथियां दी हैं।

 

(४) शङ्कराचार्य जन्म-चित्सुखाचार्य का बृहत् शंकर दिग्विजय-
तिष्ये (कलौ) प्रयात्यनल-शेवधि-बाण-नेत्रे (२५९३) ऽब्दे नन्दने दिनमणावुदगध्वभजि।

 

राधे (वैशाखे) ऽदितेरुडु (पुनर्वसु नक्षत्रे) विनिर्गत मङ्ग (धनु) लग्नेऽस्याहूतवान् शिवगुरुः (पिता) स च शङ्करेति॥

 

जन्म स्थान-केरल के पूर्णा नदी तट पर, १००४०’ उत्तर, ७६० पूर्व।
४-४-५०९ ई.पू. मंगलवार, २२५२ बजे, प्राणपद लग्न के अनुसार।
सौर वर्ष का आरम्भ ९.५३४८ मार्च ५०९ ई.पू. (९ मार्च उज्जैन मध्य सूर्योदय ६ बजे के ०.५३४८ दिन बाद), वैशाख शुक्ल १ का आरम्भ मार्च २०.७६२३४ को।
वैशाख शुक्ल पञ्चमी ३-४-५०९ ई.पू. ०९३४ बजे से, ४-४-५०९ ई.पू. ११३२ तक।
पुनर्वसु नक्षत्र ४-४-५०९ ई.पू. ०१३९ से ५-४-५०९, ०४०६ तक।
अहर्गण-सृष्टि ७,१४,४०,३२,४३,९६३ (रविवार=१), जुलियन १-१-४७१३ से (मंगलवार =१) १५,३५,६०५, कलि (गुरुवार =१)-९,४७,१४७।
४-४-५०९ ई.पू. को कालटी में सूर्योदय ६-२७-३७ बजे भारतीय समय।
२२५२ बजे-लग्न ८-२१०-२४’, प्राणपद लग्न ८-२१०-२३’ , दशम भाव ५-२६०-४३’।

 

अयनांश = -१००५८’९”, सूर्य सिद्धान्त से = -१६०५०’।
ग्रह मध्य(अंश) स्पष्ट मन्दोच्च
सूर्य २३.६२ २५.३८ —
चन्द्र —- ९०.६८ —
मंगल २७०.४८ ३०५.१९ १३०.०२
बुध १२८.६३ ४४.३४ २२०.३९
गुरु २४४.५३ २४७.४५ १७१.१८
शुक्र १७८.५१ ६७.५३ ७९.७८
शनि ३४६.४१ ३४३.२२ २३६.६२
राहु ३१.४७ —- —-

 

Featured image courtesy: Astroved and jagran.com.

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Arun Upadhyay

Arun Upadhyay is a retired IPS officer. He is the author of 10 books and 80 research papers.
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