१९४६ के हिन्दू मुस्लिम दंगे, कांग्रेस की हिन्दू विरोधी नीतियों का घिनोना सत्य

Noakhali Riots

भारत की स्वतंत्रता के पश्चात ही इस सफ़ेद झूठ को बहुत ही सुनियोजित तरीके से फैलाया गया की बिहार के हिन्दुओं ने नोआखाली में हुए दंगो का बदला लेने के लिए अपने क्षेत्र में रह रहे मुसलमानों को मारा, जबकि वास्तविकता यह है की बिहार में भी मुसलमान नोआखाली वाले कत्लेआम को ही दोहराना चाहते थे | जैसा की सामान्यतया हिन्दुओं का स्वभाव है बिहार के हिन्दू भी ऐसे किसी षड़यंत्र को नहीं भांप सके, किन्तु इस बार ऐसा जरूर हुआ की वे जल्दी ही इस षड़यंत्र को समझ गए एवं एक जूट होकर मुसलमानों को नाकों चने चबवा दिए |

 

किन्तु ऐसा होते ही मुसलमानों के धूर्त राजनेताओं ने मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है का राग अलापना आरम्भ कर दिया, और उनके आसमानी फ़रिश्ते गाँधी एवं नेहरु तुरंत उनकी सहायता को आगे आ गए | गाँधी ने बिहारी हिन्दुओं को बर्बर, क्रूर आदि विशेषणों से परिभाषित कर दिया एवं भूख हड़ताल की धमकी दे दी | नेहरु ने तो दो कदम और आगे जाकर विशेष रूप से सेना की मुस्लिम अधिसंख्य इकाइयों को वहां तैनात कर दिया एवं बिहारी हिन्दुओं को बम से उड़ाने की धमकी दे डाली, साथ ही साथ उसने हिन्दुओं को मारने, उनके घर जलाने एवं लूटने की खुली छूट भी मुस्लिम सैनिकों को दे दी |

 

यह लेख उन दुखद दिनों के अत्याचारों को भोगने की आँखों देखि का हाल है |

 

बिहार के दंगो की भूमिका : १० से १७ अक्टूबर के बीच चित्तगोंग एवं नोआखाली (अब बांग्लादेश ) में मुसलमानों द्वारा करीब १,५०,००० हिन्दुओं की बड़ी ही निर्दयता पूर्वक हत्याएं कर दी गयी थी, जिसमे हिन्दू युवा, बच्चे एवं महिलाये आदि शामिल थे, इसके सस्थ ही बड़े पैमाने पर उसुन्दर एवं पढ़ी लिखी हिन्दू युवतियों को बंदी बना लिया गया था जिन्हें बाद में या तो वेश्यालयों में बेच दिया गया या फिर मुस्लिम घरों में नोकरानी एवं योनबंदिनी बना कर रखा गया | इस क्रूर कृत्य के विरोध स्वरुप कलकत्ता में २५ अक्टूबर को नोआखाली दिवस के रूप में मनाया गया |

 

जहाँ एक और हिन्दुओं के लिए यह अत्यंत ही दर्दनाक था वहीँ मुसलमानों ने इस कत्लेआम को सामान्य रूप से लिया एवं कांग्रेस के नेत्रत्व वाली स्थानीय सरकारों ने इस सत्य को अपनी पूरी ताकत से दबाने का प्रयास किया या फिर बहुत ही हल्के रूप में स्वीकार किया | इस सबने एवं कांग्रेस के हिन्दू विरोधी कायरानाव्यवहार ने मुसलमानों को बिहार में भी बंगाल की भांति हिन्दुओं कासामूहिक कत्लेआम करने का आत्मविश्वास दिया एवं बिहार को मुस्लिम वर्चस्व वाला प्रदेश बनाने की साजिस की भूमिका बन गयी एवं इस निति पर कार्य चालू हो गया |

Bihar Riots

Bodies of Hindus getting rotten, as there were not enough wood and people left to perform the last rites. Image courtesy: Margaret Bourke-White—The LIFE Picture Collection/Getty Image

उन दिनों हिन्दू महासभा के श्री डॉ. मुंजे जी अस्थमा से पीड़ित हो अस्पताल में अपना इलाज करवा रहे थे उन्हें १० नवम्बर १९४६ को श्री डॉ. एस. पी. मुख़र्जी एवं श्रीएन. सी.चटर्जी द्वारा भेजा गया अर्जेंट टेलीग्राम मिला जिसमे सन्देश था की “नेहरु का बिहार दौरा हिन्दुओं के लिए अत्यंत ही विनाशकारी रहा है एवं नेहरु ही बिहार केहिन्दुओं की बड़े पैमाने पर गोलीबारी कर हत्याएं करवाने के लिए जिम्मेदार है, तुम्हे बिहार जाकर हिन्दुओं की सहायता करनी चाहिए”|

 

यह सन्देश डॉ मुंजे के धैर्य की सीमा एवं बीमारीकी पीड़ा से भी अधिक पीड़ादायकथा | डॉ. साहब के जीवन का लक्ष्य ही जहां भी जब भी हिन्दुओ भाइयों पर खतरा हो उनकी रक्षा करना ही था, इसलिए उन्होंने अपनी बीमारी की परवाह न करते हुए बिहार जाने की तैयारी कर ली | कांग्रेस द्वारा प्रायोजित एवं बिकाऊ समाचार पत्र निरंतर यही प्रचार कर रहे थे की बिहार के हिन्दू बंगाल का बदला लेने के लिए मुसलमानों पर जुल्म कर रहे है, तब तक गाँधी ने अपनी चिर परिचित शैली में यह कहते हुए भूख हड़ताल करने की धमकी भी दे डाली थी की हिन्दुओं के काले कारनामों के दंड स्वरुप उसे भूख हड़ताल करनी पड़ेगी | नेहरु ने कहा बिहार के हिन्दुओं ने अपने धर्म एवं संस्कृति की विरासत को बदनाम एवं शर्मिंदा कर दिया है |

 

कांग्रेस समर्थित हिन्दू प्रेस का समर्थन पाकर मुस्लिम अखबार भी हिन्दुओं के विरुद्ध निरंतर जहर उगलते रहे एवं घृणा का वातावरण तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही थी | वहीँ पर हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओं ने पाया की नेहरु की धमकियों एवं चालाकियों के सहारे मुस्लिम सैनिको द्वारा हिन्दुओं पर बम दागे जा रहे थे एवं उन्हें गोलियों से भुना जा रहा था |बिहार के हिन्दुओं के साथ नारकीय सलूक किया जा रहा था |

 

१२ नवम्बर की सुबह डॉ मुंजे ने अपनी कलकत्ता यात्रा आरम्भ की एवं १३ नवम्बर को श्री एन. सी. चटर्जी, श्री देवेब्द्र मुखर्जी ( कलकत्ता के पूर्व मेयर ) एवं मेजर बर्धन उनसे मिलने स्टेशन आये, श्री मुखर्जी एवं मेजर बर्धन बिहार जाकर आये थे, वे सभी उसी शाम को एक्सप्रेस रेलगाड़ी से पटना के लिए रवाना हो गए | रास्ते भर सभी स्टेशन पर हजारों की भीड़ उनकी प्रतीक्षा कर रही थी, हर जगह हिन्दुओंनेडॉ. मुंजे जी को अत्यंत व्यथित स्वरों से कहा की डॉक्टर साहब हमें कांग्रेस सरकार एवं उसके नेताओं द्वाराधोखा दिया गया हैएवं उनके द्वारा अत्याचार किये जा रहे हैं, कृपयाआप ही हमारी सहायता कर हमें बचा सकते हैं?

 

इस कारुणिक द्रश्य को देख कर डॉ मुंजे जैसे मजबूत व्यक्ति भी द्रवित हो गया, यह अत्यंत ही शर्मनाक एवं दुखद स्तिथि थी की हिन्दू कांग्रेस द्वारा शासित बिहार में हिन्दुओं पर जुल्म कर उनकी ऐसी दयनीय स्तिथि कर दी गयी थी | बिहार में राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व वाली सरकार के अहिंसक एवं शांतिप्रिय गरीब वोटरोंपर निर्दयता से जुल्म किये गए, उन्हेंगोलियों से भून दिया गया, उन पर लात घूंसों की बारिश हुई, घर जला दिए गए एवं कांग्रेस के शासन की नाक के नीचे मुस्लमान सैनिकों ने उनके घरों को जलाया तथा उनकी संपत्ति लूट ली | यह तो आसानी से समझा जा सकता है की इस प्रकार के अत्याचार मुस्लिम लीग शासित सिंध एवं बंगाल में होते रहे हैं किन्तु यहाँ बिहार में जिस कांग्रेस को जेल की सलाखों से सत्ता के शिखर पर पहुँचाने में हिन्दुओं ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया वहां पर भी उनकी नियति में अत्याचार सहना ही लिखा था |

Bihar Riots

Stench of decaying bodies makes Indians cover their noses near . . . where remains of victims were cremated.” Image courtesy: Margaret Bourke-White—The LIFE Picture Collection/Getty Image

डॉ मुंजे ने अपनी चिंताओं को अत्यंत ही मर्मस्पर्शी भाषण के माध्यम से रेलवे स्टेशन पर ही हजारों की संख्या में जुटी भीड़ से साझा किया |

उन्होंने कहा की यदि वास्तविकता इतनी ही भयावह है तो समझिये कांग्रेस के अंत का समय प्रारम्भ हो चूका है, मैं देख सकता हूँ की हिन्दू पहले से ही उत्पीडन,अपनों द्वारा ही बहिस्कृत एवं धोखे के शिकार हो चुके हैं |

 

बिहारमें दंगे किसने करवाए: पटना में डॉ. मुंजे,डॉ. एस. पी. मुख़र्जी से मिले एवं यह तय हुआ की डॉ. मुंजेदंगा प्रभावित प्रत्येक गाँव का दौरा कर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करें | डॉ. मुख़र्जी ने पहले से ही उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर पूरी स्तिथि का आकलन तो कर लिया था किन्तु यह वास्तविक स्तिथि का सही अंदाजा लगाने के लिए काफी नहीं था | उन्होंने ने हिल्सा, अतासरिया,खान्गारसराय, तिल्हारा, इस्लामपुर, खिदिरसराय, बांकीपुर, मसौदी नगर, नौसा, सुल्तानगंज, भागलपुर, गया, मुंगेर, तारापुर, गंगपुर, जहांबाद,नोवादा, पुनपुन,बांका, दुमका, अकबर नगर, जमालपुर, फुल्का, खड़गपुर, मुज्जफ्फर गंज, असरगंज, नयागांव, शेखपुरा एवं बेगुसराय आदि स्थानों का दौरा किया एवं वस्तुस्तिथि की जानकारी लेकर प्रमाण एकत्रित किये | वहां से एकत्रित सभी पीड़ितों के बयानों, मिलिट्री अधिकारीयों जिन्होंने की गोलीबारी को अंजाम दिया था, की स्वीकारोक्तियों,न्यायालयों से प्राप्त प्रमाणों, हिन्दू पीड़ितों के द्वारा लिखित एवं मौखिक रूप से दी गयी शिकायतों, उन निर्दोष व्यक्तियों के फोटो जिन्हें गोलीमार दी गयी थी, मशीनगन एवं ब्रेनगन की गोलियों के खोखों आदि की सहायता से डॉ. मुंजेद्वारा एक रिपोर्ट तैयार करश्री श्रीकृष्ण सिन्हा को दी गयी |

 

बिहार दंगो की रिपोर्ट: राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ कट्टर मुसलमानों द्वारा बिहार के दंगे शुरू किए गए थे। मुस्लिम लीग के कार्यकर्ता अपने अध्यक्ष और अन्य अधिकारियों से सीधे आदेश के तहत काम करते थे और कलकत्ता और पूर्वी बंगाल के जिहाद को दोहराना चाहते थे। वे सभी हिंदुओं के दिलों में डर और सांप्रदायिक आतंक फैलाना चाहते थे ताकि वे हिंदुओं बहुल क्षेत्रों से भी हिन्दुओं की राजनैतिक मजबूरियों का इस्तेमाल कर सकें। यह एक सांप्रदायिक दंगा नहीं था लेकिन पूरे ग्रामीणबिहार में मुस्लिम लीग की राजनीतिक साजिश थी। लीग ने बड़े पैमाने पर चालाकी से सारी तैयारी खुले तौर पर बड़े पैमाने पर एक साजिश के तहत की। सभी मुस्लिम सरकारी अधिकारियों, स्थानीय कांग्रेस समितियों के मुस्लिम पदाधिकारियों (बहुत से तथाकथित राष्ट्रवादी मुस्लिम दोगले गद्दार भी इनमे शामिल थे )भी इस साज़िश में पूरी तरह शरीक थे। एक बहुत बड़े झूठ को प्रेस के माध्यम से प्रायोजित कर सुनियोजित तरीके से यह आरोपलगाते हुए फैलाया गया की बिहार के हिन्दुओं ने पूर्वी बंगाल के प्रतिशोध के रूप में आम दंगा-फसाद शुरू कर दिया | सरकारी मुस्लिम अधिकारियों की गुप्त मदद से लीग ने मुस्लिम इलाकों में हथियार और गोला-बारूद का वितरण किया। सभी कानूनी और अवैध तरीके अपनाए गए थे | मुस्लिम लीग ने सरकारी मुस्लिम अधिकारीयों की गुप्त मदद से सभी मुस्लिम इलाकों में भारी मात्रा में गोला बारूद वितरित करना जारी रखा, सभी कानूनी एवं गैर कानूनी तरीकों से हथियारों, केरोसिन, विस्फोटकोंआदि को हासिल कर उनका संग्रहण किया गया | हजारों मुस्लिम गूंडो को बाहरी क्षेत्रों से बिहार में बुलाया गया एवं मुस्लिम बस्तियों में पनाह दी गयी एवं यह सब खतरनाक षड़यंत्र हिन्दू बहुल राज्य की तथाकथित लोकतान्त्रिक पार्टी कांग्रेस की छत्रछाया में हो रहा था | कांग्रेस की निष्क्रियता, मुस्लिम समर्थक नीति और मुस्लिम सुरक्षा के दिखावे की उत्सुकता से मुसलमानों को साजिश करने में एक परोक्षमददगार मिल गया और बिहार में हिंदुओं द्वारा जो विश्वास कांग्रेस पर दर्शाया गया था उसके साथ विश्वासघात कर हिन्दुओं को मुस्लिम गूंडो के हवाले कर दिया गया। कांग्रेस के मंत्री सरकार एवं पार्टी के काम में व्यस्त होने का दिखावा करते रहे जैसे उन्हें इन मरते हुए हिन्दुओं से कोई सरोकार ही न हो । वे गांधी के आह्वान पर भरोसा करते थे, उन्होंने सोचा था कि वे केवल ब्रिटिश के खिलाफ लड़ने के लिए चुने गए थे। मुसलमान आक्रामकता से उन्हें कोई मतलब ही नहीं था । यह तो अंततः एक साम्प्रदायिक मसला है जिससे उनका कोई लेना देना नहीं है, वे सभी अपने कार्यालयों  में होने के बावजूद तटस्थ और निष्क्रिय पड़े थे । जैसे ही मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं को लगा की सभी तैयारियां पूरी हो गई है और हमला करने का समय आ गया है तो उन्होंने दंगे फ़ैलाने के लिए उकसाने वाले कार्य करने आरम्भ कर दिए | बिहार में एक भी दंगा मुसलमानों की बन्दूक की पहली गोली के बिना नहीं हुआ |बिहार दंगों के पृष्ठभूमि मेंप्रमुख कारण:

 

१.मुस्लिम लीग द्वाराडायरेक्ट एक्शन का भड़काऊ प्रचार :  गजंफर अली, लियाकत अली खान और जिन्ना जैसे मुस्लिम नेताओं के गैर जिम्मेदाराना भाषण |

 

२.कलकत्ता दंगों (१६ अगस्त १०४६) में बिहारियों कीहत्याएं और कांग्रेस की केन्द्रीय समिति की आपराधिक निष्क्रियता की नीति

 

३.बाहर से आने वाले मुख्य रूप से बंगाली मुसलमान थे जो अपने साथ शिक्षित एवं संभ्रांत हिन्दू लड़कियों को जबरदस्ती उठाकर लाये थे, जिसकी भनक हिन्दुओं को थी।

 

४. बकर ईद पर मुसलमानों ने सार्वजनिक रूप से गो-वध वध किया और हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को चुनौती दी एवं उनको चिढाया गया।

 

५. ऐसी खबर थी कि मुसलमानों गुंडे ब्राह्मण और महार जाती के पीड़ितों कोजुलूस की शक्ल में लेकरगए एवंएक मस्जिद के सामने उनकी सार्वजानिक रूप से हत्याएं कर दी गयी जिसे उन्होंने बलिदान कर देने की परम्परा के रूप में दर्शाया गया।

 

६. हिंदू लड़कियों का सार्वजनिक रूप सेबलात्कार किया गया था जो मुसलमानों के बीच एक सामान्य प्रथा थी।

 

७. सार्वजनिक बाजारों में गायों के साथ अप्राकृतिक संभोग की घटनाओं की खबर थी और हिंदुओं को अपनी मां की रक्षा के लिए एक खुली चुनौती दी गई।

 

८. मुसलमानों ने हिन्दुओं पर गोलीबारी कर स्वयं ही दंगो की शुरुआत की , कहीं पर भी हिन्दुओं ने दंगो की शुरुआत नहीं की, लेकिन दुखी एवं अपनों के ऊपर हो रहे अत्याचार से तृषित हिन्दुओं ने जब पलट वार किया तो स्तिथि मुसलमानों के खिलाफ हो गयी | अब पासा उल्टा पड गया था, इतनी बड़ी तैयारियों एवं खतरनाक षड्यंत्रों के साथ साथ राजनेतिक सहायता के बावजूद उन्हें अपनी करनी को भोगना पड़ा |

 

अपनी परंपरागत बहादुरी के लिए प्रसिद्ध बिहार के भूमिहार ब्राह्मण और यादवों ने जब पलटवार किया तो मुसलमानों को छठी का दूध याद आ गया। हिंदुओं के पलटवार के सामने मुसलमानों को मैदान छोड़कर भागना पड़ा एवं जो भी उनके रास्ता में आया उसे पराजित होकर पछताना पड़ा। इस बार मुसलमान बुरी तरह से पराजित होकर मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए |लेकिन सरकारी आश्रय प्राप्त मुसलमान जल्दी ही फिर मस्जिद में इक्कठे हो गए एवं पूरी ताकत से हिन्दुओं पर गोलीबारी करने लगे, सेकड़ों हिन्दू मारे गए, अनेकों घायल हुए पर इस बार अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए हिन्दुओं ने मुसलमानों को सबक सिखाने की ठान राखी थी इसलिए मुसलमानों को पीछे हटना पड़ा, जिसे मुसलमानों पर अत्याचार का नाम देकर प्रचारित किया गया |

 

बिहार के दंगो के समाचार मिलाने पर सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा, “तलवार से तलवार का उत्तर दिया जाएगा!”

 

लेकिन सिर्फ ये शब्द ही बिहार में कांग्रेस की इज्जत नहीं बचा सके,बिहार में कांग्रेस का कोई सम्मान नहीं बचा । बिहार के हिंदुओं ने त्वरित निर्णय लिए एवं एक निर्णायक लड़ाई लड़ी |

 

नेहरू का हस्तःक्षेप : नेहरु को जैसे ही इन सब घटनाक्रम की भनक मिली उसनी अपनी टांग अडाना चालु कर दिया, मुसलमानों को किसी भी प्रकार से खुश करने के लिए तैयार कांग्रेस फिर से उनके जाल में फंस चुकी थी जैसे ही उनके खिलाफ माहोलबनामुसलमानों ने मदद के लिए रोना शुरू कर दिया। नेहरु जो अब तक नोआखाली में हुए हिन्दुओं के जनसंहार पर घडियाली आंसू बहाकर अपने आपको गोरवान्वित महसूस कर रहा था तुरंत ही बिहार के लिए रवाना हो गया। गांधी ने बिहारी हिंदुओं को धमकाया कि वे उनके पापों के लिए उपवास करेंगे। नेहरू ने चेतावनी दी कि यदि बिहार के हिन्दू मुसलमानोंके प्रति अपना रवैया नहीं बदलेंगे तो वे बम और मशीनगनों के साथ सैन्य तरीकों का सहारा लेंगे | बाद में, नेहरु को अपने शब्दों के लिए बहुत शर्मिंदगी हुई एवं उसने कहा की “उसने ऐसे शब्द कत्तई नहीं बोले थे, एवं यदि बोले भी थे तो उनका वह अर्थ कदापिनहीं था ”

Cremation

Men add wood and straw to funeral pyres in preparation for cremation of corpses after bloody rioting between Hindus and Muslims, Calcutta (now Kolkata), India, 1946. Image courtesy: Margaret Bourke-White—The LIFE Picture Collection/Getty Image

दुर्भाग्य से वहां हजारों लोग ऐसे तो जिन्होंने स्वयं  नेहरू के सार्वजनिक भाषण के समय मौजूद रहकर उसके शब्द सुने थे । नेहरू का बचकाना व्यवहार केवल धमकियों तक ही सिमित नहीं था उसने बिहार के हिन्दुओं के साथ बहुत ही शर्मनाक भाषा का उपयोग किया एवं दुर्व्यहार किया | उसने हिन्दुओं की न्यायसंगत शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया एवं चेतावनी दी की में यहाँ केवल मुसलमानों के लिए आया हूँ, तुम्हारी शिकायतें सुनने नहीं |

 

उसकी चेतावनी के बावजूद हिंदुओं ने उससे बात करने की कोशिश की, उन्हें खुद नेहरू ने व्यक्तिगत रूप से फटकारा। लगता है कि नेहरू हिंदुओं के साथ कुश्ती और मुक्केबाजी का बहुत शौक रखते हैं। एक बार वह एकहिंदू प्रश्नकर्ता के पीछे भी दौड़े, जिसे नदी में कूदकर इस तरह के महान देशभक्त और अहिंसा के भक्तों, की पिटाई से जान बचानी पड़ी |  नेहरू भी बहुत तेजी से और बचकाने तरीके से खुद उसके पीछे कूद गया और तैरने लगा । नदी के किनारे पर हजारों हिंदू और पुलिस अधिकारी अत्यंत ही क्रोध एवं घृणा से इस हास्यास्पद दृश्य को देख रहे थे | जब कबाड़ा कर निराशजनक माहोल के बाद नेहरू पटना वापस लौटे, तो दुखी हिन्दू छात्रों ने नेहरू पर हमला किया, उसकी सफेद टोपी ले ली, शर्ट को फाड़ दिया और उन्हें बैठक से बाहर कर दिया। वहाँ भी आधुनिक दिनॉन के  डॉन कुइज़ोट ने एक पुलिस अधिकारी की बेल्ट से उसकी पिस्तौल ले ली और भीड़ पर फायर करने की कोशिश की |

 

सेना द्वारा उत्पीड़न: हिंदुओं के लिए नेहरू की बिहार की यात्रा बहुत विनाशकारी साबित हुई। विशेष रूप से मुस्लिम सैनिकोंको बुलाया गया थाऔर उन्हेंवहां पोस्ट किया गया। शांति और व्यवस्था स्थापित करने के मामलों को पूर्ण तानाशाह मार्शल पॉवर्स के साथ उन्हें सौंप दिया गया था। कांग्रेस सरकार स्वयं को ब्रिटिश शासन से अधिक हत्यारा साबित कर दिया। नेहरू, आज़ाद और कांग्रेस समर्थितप्रेस आदिसभी ने सच्चाई को छिपाने की कोशिश कोरोते हुए बिहारियों ने उनके विश्वासघात एवंकांग्रेस की निति को उजागरकर दिया | यह बताया गया था कि बिहार की गोलीबारी में सिर्फ १५ से २० हिंदुओं की हत्या की गयी है जो एक बेशर्म झूठ है। यहां तक ​​कि बिहार सरकार को अंततः कबूल करना पड़ा कि ३०० लोगों कीहत्याएं हुई थी | मौके पर मोजूदगोलीबारी के लिए जिम्मेदार सैन्य अधिकारियों के बयान एवं साक्ष्य में स्पष्ट रूप से दिखाया गया कि कांग्रेस प्रचार केवल एक भयानक झूठ था | मेरठ कांग्रेस में गांधी के युवा बच्चे नेहरू ने कहा कि बिहार में कोई बमबारी नहीं हुई है। लेकिन वास्तव में हिन्दुओं के कत्लेआम के लिए सेन्य ताकत कापूर्ण दुरुपयोग किया गया एवं ऐसा कोई हथकंडा या हथियार नहीं था जिसे सेना ने निरीह हिन्दुओं पर इस्तेमाल नहीं किया हो | तेलहारा में बड़ी बंदूकों का इस्तेमाल किया गया था औरनागर नोसा में अन्धाधुन्ध फायरिंग की गयी थी।

 

बिहार के एक प्रसिद्ध नेता एवं ए आई सी सी  के सदस्य बाबू जगत नारायण लाल, ने कहा, “नगर नोसा में अत्यधिक गोलीबारी हुई थी। सैन्य अर्थात् मद्रास रेजिमेंट के सैनिकों ने असहाय हिंदुओं की दुकानों और घरों को लूट लिया। वे घरों के अन्दर घुस गए एवं  महिलाओं, बच्चों और बूढ़े तथा बीमार व्यक्तियों को उनके बिस्तरों में गोली मारी गयी । उन्होंने सरकारी डाकघर भी लूट लिया। पोस्ट मास्टर घायल हो गया था और एक डाकिये की गोली मार दी गई थी “|

 

कुख्यात नागर नोसा प्रकरण:यह जगह बिहार के पटना जिले में स्थित है, वहां ५००० हिंदू मकान और १२०० मुस्लिम मकान थे। दंगों से पहले, आसपास के गांवों से हजारों मुसलमानों ने नागर नोसा में इकठ्ठा होना चालू कर दिया वे सल्फर, फास्फोरस, कॉपर सल्फेट, केरोसीन, सोडा, पोटाश और कई अन्य विस्फोटक पदार्थ और ज्वलनशील पदार्थों का संग्रह कररहे थे। इससे तनाव अचानक बढ़ गया, इस जगह के जिम्मेदार लोगों ने शांति स्थापित करने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों की एक संयुक्त बैठक बुलाया। हिंदुओं ने मुसलमानों से बाहार से आये हुए गूंडों को वापस भेज देने के लिए कहा  किन्तु मुसलमानों ने इनकार कर दिया, एवं शर्त रखी की “यदि आप वास्तव में शांति चाहते हैं, तो हमें हमारे बकरीद के लिए भेड़ देनी होगी, अन्यथा हम गाय की हत्या करेंगे!”

 

हिंदुओं ने इस योजना को खारिज कर दिया, मुसलमान बैठक छोड़कर चले गए । ३नवंबर १९४६को अगले दिन, आम नबी के घर से फायरिंग होना चालू हो गयी, एक व्यापारी मुकुंद घायल हो गया था और उसके नौकर नानक गोप की गोलीबारी मृत्यु हो गयी । राम सरन सिंह, दीपा सिंह, एक और व्यापारी और एक रास्ते जाता हुआ व्यक्ति बन्दुक की गोलियों से बाल बाल बचे | उन्होंने चीखना चिल्लाना चालू कर दिया जिससे व्यापारी मातेसरवा अपनी दुकान से बाहर आया किन्तु उसे वहीँ उसकी दूकान के बरामदे में ही गोली मार दी गयी | उनके बेटे ने अपने पिता को बचाने की कोशिश की तो उसके पांव में गोली लगी एवं वह वहीँ पर गिरकर छटपटाने लगा | इस प्रकार मुसलमानों द्वारा दंगा शुरू कर दिया गया किन्तु  चूंकि बिहारी हिंदू कायर और डरपोक नहीं थे, इसलिए उन्होंने भी इसका प्रतिकार करने की ठान ली | ४नवंबर को हिंदुओं ने जवाबी कार्रवाई की और  एक ही  दिन में मुस्लिम आक्रामकता पूरी तरह ठंडी पड गयी । ५ नवम्बर को जब ऊपरी तोर पर सब शांत हो गया तो मिलिट्री को उतारा गया | जिसमें कप्तान सहित सभी सैनिक मुसलमान थे। कांग्रेस सचिव अबू बायैस, अली हसन और यासीन मिया उनके साथ थे, उन्होंने सेना को हिन्दुओं के खिलाफ कार्यवाही करने के निर्देश दिए, इस प्रकार हिंदू कांग्रेस के निर्देशों के तहत हिंदुओं के खिलाफ प्रतिशोध एवं उनकी हत्याओं का घृणित कृत्य शुरू हुआ |

 

सैनिकों को सब कुछ खुले आम करने की पूरी छूट थी उन्होंने मुकुंद साऊऔर मातेरसा के घरों को लूटा। उन्होंने उमा शंकर बाबू, तुलसी मोहता और धूप्सा के घरों के गाय के छप्पर को आग के हवाले कर जला दिया। चमन साऊ की दुकान को भी लूट लिया गया था। फकीरसाऊ को धनदेने के लिए कहा गया लेकिन दो रुपये से अधिक नहीं होने से उन्हें गोली मार दी गई थी। पंजाबी नामक एक आदमी दंगों में  फँस गया था। अबू बायैस ने सुझाव दिया कि उसके जैसे अमीर आदमी को अपना समस्त धन देकर अपनी जान बचा लेनी चाहिए ऐसे में उसने अपने सारे पैसे देकर अपना जीवन बचाया | पोस्ट ऑफिस को लूट लिया गया था, पोस्ट मास्टर घायल हो गया था और भागने की कोशिश करते वक्त इतवारी दास नामक एक डाकिये की गोली मार दी गई थी। अबू बायैस के निर्देशों के तहत सैनिकों ने चारों ओर गोलीबारी की। कुल मिलाकर ९०० राउंड फायर किये गए थे। पुरुषों को न केवल सड़कों पर, बल्कि घरों के भीतर से, उनके बिस्तरों में मारा गया, और तो और तो महिलाएं और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया। २५० हिंदू मारे गए थे और कई घायल हुए थे। घरों और दुकानों को लूट लिया और जला दिया गया था। एक मील दूरी तक मार करने वाली बंदूकें इस्तेमाल की गई । दंगा प्रभावित पीड़ितों के सभी बयानों को एकत्रित किया गया। गोलियों के २३ अवशेष डॉ. मुंजे द्वारा एकत्र किए गए थे, एवं रिपोर्ट तैयार की गयी |

 

तुलसी प्रसाद ने डॉ. मुंजे से कहा की  “नेहरू को भी ९३ गोलियां दिखायी गयीं थी।”

 

नगर नोसा में जो भी हुआ वह अन्य स्थानों पर भी दोहराया गया। मैदान पूरी तरह से मृत शरीरों से अटा पड़ा था ।

 

हिंदू पीड़ितों की सही संख्या का पता लगाना बहुत कठिन था ।

बिहार के एक कांग्रेस नेता ने उनके नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर डॉ. मुंजे को निजी तौर बताया की  “मगध के हिंदुओं बहुत ही आत्मसम्मान वाले और संवेदनशील हैं। उन्हें लगता है यह पुलिस में शिकायत दर्ज करवाने या सरकार के अस्पताल में शरण लेना उनके लिए अपमानजनक है, क्यों की यही सरकार एवं पुलिस ही तो उनके विनाश का कारण थी | इसके अलावा वे भयभीत हैं कि आगे की लिए भी हिंदू कांग्रेस के नेता एवं मंत्रिगण फिर से उनके लिए कुछ नई आपदा लाएंगे। ”

 

एक बार डॉ। मुंजे ने देखा कि कुछ हिंदुओं मृत शरीरों को चुपचाप और रात के अँधेरे में ले जा रहें हैं , पूछे जाने एवं उनको सुरक्षा का विशवास दिलाने पर उन्होंने स्वीकार किया कि वे गोलीबारी के पीड़ितों को निकाल रहे थे। ऐसे में बिहार कांग्रेस मंत्रालय निष्क्रिय, अन्यायपूर्ण, अंधा और कायर साबित हुआ। कांग्रेस सरकार ने सेना को गोली मारकर हत्याएं करने का निर्देश दिया और स्पष्ट निर्देश दिया की निशाना नहीं चुके । उन्हें संकोच न करने की चेतावनी दी गई थी और न केवल सुरक्षा के प्रति वचन दिया गया था बल्कि प्रभावी फायरिंग के लिए विशेष पुरस्कार का आश्वाशन भी दिया गया था।

सभी हिन्दू स्वयसेवी संस्थाओं एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था किन्तु खाकसार एवं मुस्लिम लीग के गुंडों को सभी जगह जाने की एवं मिलिट्री एवं खाकी ड्रेस पहनकर गुंडागर्दी करने की खुली छूट थी | मुस्लिम शरणार्थियों के लिए लाखों रुपये बहाए जा रहे थे किन्तु हिन्दुओंभाई सामान्य मानवीय सहायता के लिए भी तड़प रहे थे, उन्हेंसामान्यमानवीय सहायता भी उपलब्ध करवाने से इनकार कर दिया गया था | डॉ मुंजे जी ने स्वयं अपनी आँखों से गाजीपुर के शरणार्थी शिविरों में नंगे, घायल बीमार  एवं रोते हुए हिन्दुओं की यह दुर्दशा देखि, उन्हें एक एक मुट्ठी अनाज के लिए भी तरसना पड रहा था | हिन्दुओं के सभी हथियार उनसे सरेंडर करवा लिए गए थे या फिर  जब्त कर लिए गए थे  किन्तु मुसलमानों को सभी अवैध हथियार लेकर घुमने एवं अराजकता फ़ैलाने की छूट थी, पुलिस में कोई भी हिन्दुओं की रिपोर्ट लिखने को तैयार नहीं था , हिन्दुओं को अपनी आत्मरक्षा करने के जुर्म में भी गिरफ्तार किया गया एवंजेल की सलाखों के पीछे सडा दिया गया |

 

बड़ी संख्या में खाकसारोंएवं मुस्लिम लीग के सदस्यों का राहत के नाम पर आना जारी था एवं उन्होंने हिन्दुओं के शरणार्थी शिविरों पर हमले किये एवं उन्हें बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी |

 

Note: What I saw in Bihar (or Horrors of Nehru Raj) पुस्तक के कुछ अनुवादित अंश, इसअंश को श्री देवल देब बासु ने सर्वप्रथम फेसबुक पर अंग्रेजी में उपलब्ध करवाया था, हिंदी भाषी भाइयों की सुविधा के लिए इसे हिंदी में अनुवादित करने का प्रयास किया गया है | This article, originally done in English by Deval Dev Basu, is translated to Hindi by Shri Shanti Prakash Sharma.

 

References:

1. 1946: The great Calcutta Killings and Noakhali Genocide: Dinesh Chandra Singha and Ashok Dasgupta

2. History of Riots in India by Prof. Suranjan Das

3. Minorities in Pakistan: P. C. Lahiri

4. Jogendra Nath Mandal Keno Podotyag Korechilen– Debajyoti Rai

5. Booklet on Migration of Hindus after 1950 riots The price of Partition by Rafiq Zakaria

6. My People Uprooted by Prof. Tathagata Roy

7. 1950: Rokto Ronjito Dhaka Barisal Ebong by Dr. Dinesh Chandra Singha

8. Wikipedia.

 

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Debal Dev Basu

Debal Dev Basu is a physician. He is an ex Major of the Indian Army. Presently he is in private practice in Kolkata. He writes on issues pertaining to politics and History.
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