Laxmibai: झाँसी की रानी के बारे में कुछ तथ्य जो आपको पता होनी चाहिए 
Laxmibai , Rani of Jhansi
4 साल की उम्र में मातृहीन, 14 साल की उम्र में शादी, 23 वर्ष में एक मां, 25 वर्ष में विधवा, क्रांतिकारी और झांसी की रक्षक 29 की उम्र में, 30 साल में युद्ध के मैदान में ब्रिटिश सेना के खिलाफ योद्धा, और 30 की उम्र में ही वीरगति..!

 

 लक्ष्मीबाई सभी स्वतंत्रता सेनानियों, विशेष रूप से 1858 से 1947 तक महिला क्रांतिकारियों के लिए एक प्रेरणा थी। इतिहास में स्वर्णाक्षरों में बहादुर योद्धा लक्ष्मीबाई की गाथा को अमर किया गया है। लक्ष्मीबाई आज तक हमें प्रेरणा देती हैं और भविष्य की पीढ़ियों को अनंत काल तक प्रेरित करती रहेंगी।

 

किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि वाराणसी से एक साधारण मराठी ब्राह्मण परिवार की बेटी मणिकर्णिका तांबे एक दिन झाँसी की रानी बनेगी और इतिहास में वीरता, साहस, और बलिदान की प्रतीक के रूप में जानी जायेगी! 19 नवंबर 1828 को पैदा हुई मनु (उपनाम) ने अपना प्रारंभिक जीवन वाराणसी में बिताया। उनके पिता मोरोपंत तांबे कानपुर के पास बिठूर के पेशवा बाजी राव द्वितीय के दरबार में काम किया करते थे। बिठूर गंगा के किनारे स्थित है; यह राम और सीता के जुड़वां बेटों लव और कुश का जन्मस्थान भी है।
Jhansi Fort
चार साल की उम्र में लक्ष्मीबाई की मां भागीरथी बाई के देहांत के बाद, बिठूर के पेशवा ने उसे अपनी बेटी के रूप में स्वीकार किया। मनु पेशवा के महल में रहने लगीं। पेशवा ने उन्हें छबीली नाम दिया, जिसका अर्थ है चंचल। उन्होंने मनु को महल में शाही तरीके से शिक्षा प्रदान की। जल्द ही मनु बहुत कम उम्र में घुड़सवारी, निशानेबाज़ी, तलवार के उपयोग आदि में कुशल बन गई। निपुण पेशवा बाजीराव द्वितीय ने नाना साहिब (जिन्होनें 1857 के विद्रोह में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी) को बेटे के रूप में अपनाया था। मनु और नाना साहिब एक साथ खेले, और एक साथ वे युद्ध की कला सीख गए।

 

नाना साहिब और लक्ष्मीबाई से संबंधित एक दिलचस्प कहानी है। वे मनु से चार साल बड़े थे। एक बार, अपने हाथी की सवारी करते समय, मनु ने अनुरोध किया की वे भी सवारी करेंगी। नाना साहिब ने मनु के अनुरोध को मना कर दिया। नाराज मनु ने घोषित किया कि एक दिन उनके पास खुद के १० हाथी होंगे और वे उन पर सवारी करेंगी। कोई आश्चर्य नहीं की उनकी घोषणा जल्द ही सच हो गई!
Discussion Hall of Laxmibai

Discussion Hall of Laxmibai

झांसी के राजा, मराठा वंश के गंगाधर राव नेल्लकर बिथूर की यात्रा पर थे। एक घोड़े की सवारी करते हुए और तलवार का अभ्यास करते हुए, 14 वर्ष की मनु को उन्होंने देखा और देखते ही रह गये। वे मनु के साहस और सुंदरता से प्रभावित हो गए। राजा ने तुरंत मनु से शादी करने का फैसला किया; उनकी पहली पत्नी का निधन हो गया था। मनु के पिता और पेशवा गंगाधर राव के विवाह प्रस्ताव पर सहमत हुए, हालांकि राजा मनु से कई वर्ष बड़े थे। झाँसी किले के परिसर के भीतर स्थित गणेश मंदिर में शादी का आयोजन किया गया। गंगाधर राव ने ही मनु का नाम लक्ष्मीबाई रखा।

 

गंगाधर राव एक राजनीतिज्ञ थे। हालांकि झांसी के अपने शासनकाल के दौरान सफल रहे, लेकिन अपने राज्य में सभी उनसे डरते थे। किसी से भी नाराज़ होने पर उसको राजा फांसी की सजा देते थे। रानी लक्ष्मीबाई ने इस अभ्यास को रोक दिया। राजा ने अपने राज्य से संबंधित प्रशासनिक, न्यायिक और सभी मामलों पर लक्ष्मीबाई से सलाह ली। गंगाधर राव कला और संस्कृति के प्रेमी थे, उनके पास एक पुस्तकालय था जिसमें संस्कृत पांडुलिपियों का विशाल संग्रह था। उन्होंने नियमित रूप से नाटकघरों की मेजबानी की और स्वयं भी भूमिकाओं में भाग लिया करते थे।
Weaponry at Jhansi Fort
झांसी में करीब 5,000 सैनिकों की सेना थी। लक्ष्मीबाई ने महिलाओं के एक दल को सेना में जोड़ा। उन्होंने खुद महिलाओ को प्रशिक्षित किया। लक्ष्मीबाई एक जबरदस्त घुड़सवार थीं, उनके पसंदीदा घोड़े सारंगी, पवन और बादल थे। लक्ष्मीबाई नियमित रूप से महिला सेना के साथ अभ्यास करती थीं। उन्होंने झांसी में रनिवासों में सशस्त्र महिला सुरक्षाकर्मी तैनात किए।

 

उनकी महिला सेना की एक सेनापति झलकारीबाई थी। झलकारीबाई का चेहरा लक्ष्मीबाई  से हूबहू मिलता था, दोनों जब एक साथ खड़ी होती थी तो जुड़वाँ लगती थी। झलकारीबाई ने, जब वे छोटी थी तो अकेले ही जंगल में एक तेंदुए को मार डाला था। रानी की तरह, वे भी बहादुर थी और युद्ध के हथियारों और घोड़े की सवारी में प्रशिक्षण लिया था। झलकारीबाई का विवाह पुणान सिंह से हुआ, जो झांसी सेना के तोपखाने में तैनात था।
Cell, Jhansi Fort

Place where offenders were hanged during Gangadhar Rao’s regime; this was stopped by Laxmibai

23 साल की उम्र में, रानी लक्ष्मीबाई ने एक बेटे को जन्म दिया जिनका नाम दामोदर राव रखा गया। सिंहासन के उत्तराधिकार के लिए परिवार के सदस्यों के बीच षड्यंत्र चल रहा था। परिवार के किसी सदस्य ने चार महीनों के दामोदर राव को जहर खिला दिया। बच्चे की मृत्यु हो गई।

 

रघुनाथ राव (गंगाधर राव के बड़े भाई) गंगाधर राव के तत्कालीन पूर्ववर्ती थे। रघुनाथ राव की मृत्यु के बाद, झांसी के सिंहासन में चार दावेदार उत्पन्न हुए- रघुनाथ की विधवा पत्नी जानकी बाई; किशन राव और गंगाधर राव, उनके भाई; और अली बहादुर, राजा का नाजायज पुत्र। गंगाधर राव की पहली पत्नी निधन हो जाने के बाद, शेष दावेदारों को आशा हुई। लेकिन राजा का विवाह लक्ष्मीबाई से होने और उनके बेटे के जन्म ने उनकी उम्मीदों को नाकाम कर दिया। अफवाहों के अनुसार, वह लक्ष्मीबाई की भाभी थी जिन्होंने राजकुमार की मौत में सक्रिय भूमिका निभाई।
Ganesh Temple, Jhansi Fort

Ganesh Temple at Jhansi Fort where Laxmibai was married to Gangadhar Rao

इस घटना के बाद राजा गंगाधर राव बीमार हो गए। रानी लक्ष्मीबाई के निरंतर अनुरोध पर, राजा ने अपनी मृत्युशैया पर अपने रिश्तेदार 5 वर्षीय आनंद राव को गोद लिया। उनका नाम दामोदर राव रखा गया। Doctrine of Lapse सिद्धांत के तहत, ब्रिटिश ने कई राज्यों और राजवंशों पर कब्जा कर लिया था। इसलिए, यह सुनिश्चित करने के लिए कि दामोदर राव सिंहासन का उत्तराधिकारी होगा, तीन स्थानीय ब्रिटिश अधिकारी अर्थात् मेजर एलिस, कप्तान मार्टिन और एक अन्य राजनीतिक एजेंट, को इस गोद लेने के समारोह में साक्षी हेतु बुलाया गया था। एक दिन बाद गंगाधर राव की मृत्यु हो गई, यानी नवम्बर 1853 में।

 

राजा की मौत के बाद, रानी लक्ष्मीबाई ने समाज में चलने वाले विधवाओं के नियमों का पालन नहीं किया। उन्होंने न तो अपना कंगन तोडा और न ही सफेद कपड़े पहने। लक्ष्मीबाई ने अपने आधिकारिक शोक गतिविधियों को न्यूनतम तक सीमित कर दिया और केवल 13 दिनों के लिए घर के अंदर रही।
Samadhi of Martyrs at Jhansi Fort

Samadhi of Martyrs at Jhansi Fort

अंग्रेजों ने दामोदर राव के झांसी के सिंहासन के दावे को खारिज कर दिया और Doctrine of Lapse सिद्धांत झाँसी पर लागू कर दिया। एक साल बाद, रानी लक्ष्मीबाई को रु 60,000  और किले के महल में रहने की अनुमति दी।

 

1857 के शुरुआती महीनों में, कारतूसों के बारे में अफवाह थी जिसमें ब्रिटिश द्वारा सूअर या गोमांस वसा लगाया जाता था, जिससे सैनिकों के बीच अशांति पैदा हुई थी। और पहला विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ में शुरू हुआ। यह समाचार झांसी पहुंचा तो लक्ष्मीबाई ने झांसी की महिलाओं को इकट्ठा किया और एक हल्दी कुमकुम समारोह का आयोजन किया, उन्हें समझाने के लिए कि ब्रिटिश से नहीं डरना। लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश को कायर कहा। लगभग एक महीने बाद, अर्थात् जून 1857 में, 12 वीं बंगाल मूल भारतीय इन्फैंट्री के भारतीय सैनिकों ने झांसी किला पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने वहां तैनात यूरोपीय अधिकारियों और उनके पत्नियों और बच्चों की हत्या कर दी। रानी से बड़ी रकम लेने के बाद सैनिकों ने किला छोड़ दिया। तत्काल, रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी का प्रशासन ग्रहण किया।
Jhansi Fort Walls

Holes in Fort walls from where Laxmibai’s Army fired at enemies

इस बीच, विद्रोहियों का एक समूह, जो झांसी के सिंहासन का दावा करने वाले प्रतिद्वंद्वी राजकुमार के समर्थक थे, ने किले पर हमला कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने उनके प्रयास को नाकाम कर दिया, उन्हें हराया। अंग्रेजों के दोनों सहयोगी ओरछा और दतिया के शासकों ने अगस्त 1857 में झांसी पर हमला किया। वे झांसी को आपस में विभाजित करना चाहते थे। रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना इकट्ठी की; किले के परिसर के भीतर तोपों को ढालने के लिए एक फाउंड्री की स्थापना की। रानी ने सफलतापूर्वक आक्रमणकारियों को हराया! इसके बाद, रानी लक्ष्मीबाई ने अगस्त 1857 से जनवरी 1858 तक झांसी पर शांतिपूर्वक शासन किया।

 

मार्च 1858 के तीसरे हफ्ते में, ब्रिटिश बलों ने कमांडर ह्यूग रोज के तहत, झांसी की ओर चढ़ाई की। कमांडर ने रानी को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया और अगर उसने नकार दिया तो किले और शहर के विनाश की धमकी दी। यह थे लक्ष्मीबाई के अपनी सेना से कहे हुये शब्द जिन्होनें उन्हें प्रेरित किया : “हम स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं। भगवान कृष्ण के शब्दों में, हम अगर विजयी हैं, तो जीत के फल का आनंद लेंगे; अगर युद्ध के मैदान में पराजित होकर मार डाले गये, तो हम निश्चित रूप से अनन्त महिमा और उद्धार प्राप्त करेंगे।”
Jhansi Fort
रानी लक्ष्मीबाई और ब्रिटिश सेना के बीच लड़ाई 24 मार्च 1858 को शुरू हुई। रानी के बचपन के दोस्त, तात्या टोपे ने झांसी की रक्षा के लिए 20,000 सैनिको के साथ झांसी की ओर चढ़ाई की, लेकिन उन्होंने रास्ते में ब्रिटिश सैनिकों का सामना करना पड़ा। झांसी में लड़ाई 10 अप्रैल तक जारी रही। दोनों पक्षों की भारी हानि हुई थी। ब्रिटिश सेना किले की दीवारों पर चढ़ाई करने और किले और महल में घुसने में सक्षम हुई। लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे और राव साहिब (नाना साहिब के भतीजे) के समर्थन से एक बल जमा करने के लिए किले से भागने का फैसला किया। इस बीच झलकारीबाई रानी के भेस में अपने घोड़े में दुश्मन की तरफ जाने लगी ताकि ब्रिटिश सेना का  ध्यान भटके और लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव के साथ आसानी से निकल सके। अपनी पीठ से बंधा हुऐ पुत्र के साथ लक्ष्मीबाई ने अपने पसंदीदा घोड़ों में से एक, बादल पर सवारी करते हुए किले से कई फुट नीचे छलांग लगा दी और भाग निकलीं, आगे जा कर बादल की मृत्यु हो गई, जबकि दोनों माँ बेटा बच गए।

 

रात के अंधेरे में, लक्ष्मीबाई ने अपने दत्तक पुत्र और अपने नौ सैनिकों के साथ तात्या टोपे से जुड़ने के लिए कालपी की ओर चल दी। उनके साथ काशी बाई, मोती बाई, दीवान रघुनाथ सिंह, खुदा बख्श, बशरत अली (कमांडेंट), दीवान जवाहर सिंह, लालाभाऊ बक्षी, गुलाम गौस खान, सुंदर-मुंदर और दोस्त खान थे। ब्रिटिशों ने झलकारीबाई को पकड़ लिया था और फांसी की सजा दी।
Jhansi Fort

The place from where Laxmi jumped down several feet, ridng on her horse Badal

चार नेताओं के गठबंधन – रानी  लक्ष्मीबाई, राव साहिब, बांदा के नवाब और तात्या टोपे ने कालपी के शहर पर कब्जा कर लिया। ब्रिटिश सेना ने 22 मई को कालपी पर हमला किया। उस भयंकर लड़ाई में, रानी, जिन्होंने युद्ध का नेतृत्व किया, पराजित हो गईं। चारों नेता ग्वालियर से भाग गए और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हो गए, जिन्होंने शहर की घेराबंदी की। महाराजा सिंधिया आगरा से भाग गए थे। नाना साहिब ग्वालियर के पेशवा बनाये गये। राणी लक्ष्मीबाई ने नेताओं को एक संभव ब्रिटिश हमले के खिलाफ तैयार होने के लिए आग्रह किया, लेकिन किसी ने नहीं माना। 16 जून को, अंग्रेजों ने ग्वालियर पर हमला कर दिया।

 

रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर के निकट फूल बाग में ब्रिटिश सेना का सामना किया। 17 जून 1858 का दिन था। रानी ने घुड़सवार सैनिक वर्दी पहनी हुई थी उस लड़ाई में। अधिकांश सैनिक इस लड़ाई में शहीद हो गए। एक दुश्मन सैनिक के साथ लड़ते समय रानी बुरी तरह से घायल हो गयी। किसी तरह वे युद्ध के मैदान से भागने में कामयाब रही, क्योंकि वे नहीं चाहती थी कि ब्रिटिश उनहें छुवे या उनके शरीर पर कब्जा करे।
Jhansi City

View of Jhansi City from the Fort

लक्ष्मीबाई एक जंगल में चली गईं जहां एक झोपड़ी में एक साधु से मुलाकात हुई। दुश्मन रानी का पीछा कर रहे थे और जंगल में सैनिकों के पास आने की आवाज रानी को सुनाई दी। रानी ने साधु से आग्रह किया कि वे झोपड़ी को आग लगाए, जिससे वे जलकर राख हो जाये ताकि दुश्मन उन्हें न छु पाए। संन्यासी ने उनके आग्रह का पालन किया। सैनिक वहां आ पहुंचे और जलती झोपड़ी देखकर वापस चले गए। बाद में, स्थानीय लोगों ने लक्ष्मीबाई का अंतिम संस्कार किया। तीन दिन बाद अंग्रेजों ने ग्वालियर पर कब्ज़ा कर लिया था।

 

Featured image courtesy: Utsavpedia; Images in article body by author.
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Manoshi Sinha is a writer, history researcher, avid heritage traveler; Author of 8 books including 'The Eighth Avatar', 'Blue Vanquisher', 'Saffron Swords'.
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