श्री राम यहां भगवान के रूप में नहीं, राजा के रूप में पूजे जाते है। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में ओरछा दुनिया के एकमात्र जगह है जहां भगवान राम को राम राजा के रूप में संबोधित किये जाते है। यहां मध्य प्रदेश पुलिस राम राजा को तोपों की सलामी देते है।
इस छोटे पवित्र शहर की सड़कों में अधिकांश साइनबोर्ड, होर्डिंग, दुकानों, आदि के नाम ‘राम राजा’ के साथ शुरू होते हैं।
इस अवधारणा के पीछे एक रोचक कहानी है। कुछ 440 साल पहले मध्य सोलहवीं सदी में ओरछा में बुंदेला राजपूतों का शासन थे। रियासत 1501 ईस्वी में रुद्र प्रताप सिंह द्वारा यह शहर स्थापित किये गये थे। घटना मधुकर शाह और उनकी रानी गणेशकुंवर से संबंधित है। मधुकर शाह 1554 ईसवी से ओरछा राज्य में शासन किया था।
मधुकर शाह भगवान विष्णु का भक्त था। रानी गणेशकुंवर भगवान राम का। ओरछा के राजा विष्णु के दशावतार में विश्वास करते थे, परंतु रानी नहीं करती थी। राजा के लिए, विष्णु राम था। रानी के लिए, विष्णु एक और परमेश्वर था। उनके लिए, भगवान राम एकमात्र परमेश्वर था। वह केवल राम की पूजा करती थी। और कोई अन्य देवताओं में विश्वास नहीं करती थी।
कई बार, लगभग हर रोज, राजा और रानी के बीच इस मुद्दे पर बहस होती थी । रानी को समझाने की कोशिश में ओरछा के राजा के सभी प्रयास विफल रहे।
अपनी बात साबित करने के लिए, राजा ने अपने कक्ष, दीवारों और छत में भगवान विष्णु के दशावतार की चित्रों में व्याख्या की। रानी के कक्ष की दीवारों में भी विष्णु की दशावतार रूप चित्रों में सजाया। लेकिन यह प्रयास भी विफल रहें।
Incomplete Ram Raja temple on left; main temple on the right
एक दिन, राजा अपनी रानी समेत दरबारियों, अधिकारियों, और कुछ लोगों के समूह के साथ मथुरा और वृंदावन, भगवान कृष्ण के दर्शन हेतु, जाने के लिए निर्णय लिये। रानी ने साफ मना कर दि। उन्होंने कहा वह तीर्थयात्रा पर केवल अयोध्या जा सकती है। राजा और रानी के बीच बहस हुई। रानी अड़े रही । वह मथुरा और वृंदावन जाने के लिए मना कर दि।
नाराज मधुकर शाह ने रानी को ओरछा राज्य छोड़ने को कहा। वह उसे अयोध्या जाने की सलाह दि जहां राम रहता है। राजा ने रानी को धमकी दी की अगर वह वापस ओरछा आती है तो साथ राम को लाये। राजा के आदेश का पालन करते हुए रानी गणेशकुंवर अयोध्या के लिए चल दि।
अयोध्या में रानी ने तपस्या शुरू कर दि। भगवान राम को उसके सामने प्रकट होने हेतु आह्वान कि। रानी ने तपस्या 12 साल तक जारी रखी। राम प्रकट नहीं हुए।
निराश रानी ने आत्महत्या करने का निर्णय लि। वह सरयू नदी में कूद गई। एक बच्चा अचानक नदी में कहीं से गणेशकुंवर की गोद में प्रकट हुये। “मैं राम हूँ,” बच्चा ने कहा। उत्तेजित रानी ने बच्चे को गले लगा लि। उसकी आँखों से आंसू बहने लगी। बच्चे को गोद में लिए रानी नदी के किनारे की ओर चली। बच्चे की नीले रंग और गहरी पानी से प्रभावित नहीं होना यह प्रमाणित करता है कि वह राम था।
रानी गणेशकुंवर ने राम को विनती की कि वह ओरछा उसके साथ चले। राम तीन शर्तों पर सहमति हुए:
- उन्होंने कहा कि वह एक मूर्ति में बदल जाएगा। रानी हमेशा उसे गोद में लिए, अयोध्या से ओरछा चल के जाए। वह केवल पुष्य नक्षत्र में चल सकती है। (इसका मतलब रानी एक महीने में केवल एक दिन ओरछा की दिशा में कदम रख सकती हैं)।
- ओरछा पहुँचने के बाद, रानी राम की मूर्ति को पहली बार जहां रखेंगे, वह उस जगह पर हमेशा के लिए आराम करेंगे। इसके बाद मूर्ति को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
- राजा मधुकर शाह ओरछा से दूर किसी अन्य स्थान पर अपनी राजधानी स्थापित करना होगा क्यों कि राम ओरछा के राजा होगें। तब से उन्हे राम राजा के रूप में जाने जायेंगे।
राम ने रानी से पूछा कि क्या वह तीन शर्तों का पालन कर सकती है। रानी सहमति व्यक्त की।
पुष्य नक्षत्र में, रानी गणेशकुंवर ने राम की मूर्ति गोद में लिए अपनी यात्रा पर निकल पड़े। लोक-साहित्य के अनुसार, रानी को अयोध्या से ओरछा तक पहुंचने के लिए 8 साल के आसपास लगे। रानी राम के साथ ओरछा आने की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई।
मधुकर शाह ने रानी के महल के पास राम के लिए एक मंदिर के निर्माण हेतु बेहतरीन आर्किटेक्ट और बिल्डरों को काम सौंपा। राजा मंदिर के बाहरी डिजाइन भगवान विष्णु के चतुर्भुज आकार रखे, क्योंकि वह विष्णु को मानता था। राजा का मानना था कि राम और विष्णु एक हैं।
मंदिर की वर्णन एक बहु-मंजिला इमारत की तरह हैं जो किले, मंदिर, और महल के मिश्रण हैं। छत पर एक गुंबद संरचना पूरा हो जाने की थी जब रानी गणेशकुंवर राम की मूर्ति के साथ ओरछा पहुंची। (यह गुंबद आज तक अपूर्ण है!) मजदूर और आर्किटेक्ट काम छोड़ भगवान राम के दर्शन के लिए पहुंचे।
रानी गणेशकुंवर राम की मूर्ति के साथ महल में प्रवेश कि। उत्साह में, वह दूसरी शर्त भूल गयीं। वह महल की रसोई में राम की मूर्ति को रखी और अपने भगवान के लिए मिठाई तैयार करने के लिए रवाना हो गई। अचानक उसे गलती का एहसास हुई। रानी वापस पहुँची और राम की मूर्ति को स्थानांतरित करने की कोशिश की, लेकिन असफल हुई।
राजा, रानी, और ओरछा के लोग राम की पूजा, राम राजा के रूप में संबोधित करते हुए, महल में शुरू कर दिए। चतुर्भुज मंदिर एक मूर्ति के बिना बना रहे। महल मंदिर में परिवर्तित कर दि गई।
मधुकर शाह ने कुछ ही किलोमीटर दूर टीकमगढ़ में अपनी राजधानी स्थानांतरित कर दि। ओरछा के प्रशासन अपने हाथों में बना रहे। उसके बाद से, श्री राम, राम राजा के रूप में जाने जाने लगे। राम राजा की एक झलक पाने के लिए दूर और पास से लोग ओरछा आने लगे।
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