आज़ादी

आज़ादी

खोल दी गयी आज़ादी के हाथों की हथकड़ी और पैरों की बेड़ियाँ, फिर खींच दी गयी चंद लकीरें करने को अठखेलियां आज़ादी ने सोचा ये कैसा बंधन-मुक्ति का एहसास है बाहर से हर शै बिंदास…


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