मनुस्मृति और नारी: भ्रांतियां और निवारण

Manusmriti on women

भारतीय समाज में एक नया प्रचलन देखने को मिल रहा है। इस प्रचलन को बढ़ावा देने वाले सोशल मीडिया में अपने आपको बहुत बड़े बुद्धिजीवी के रूप में दर्शाते है। सत्य यह है कि वे होते है कॉपी पेस्टिया शूरवीर। अब एक ऐसी ही शूरवीर ने लिख दिया मनु ने नारी जाति का अपमान किया है। मनुस्मृति में नारी के विषय में बहुत सारी अनर्गल बातें लिखी है। मैंने पूछा आपने कभी मनुस्मृति पुस्तक रूप में देखी है। वह इस प्रश्न का उत्तर देने के स्थान पर एक नया कॉपी पेस्ट उठा लाया। उसने लिखा-


“ढोल,  गंवार, शूद्र , पशु , नारी सकल ताड़ना के अधिकारी।”

 

मेरी जोर के हंसी निकल गई। मुझे मालूम था कॉपी पेस्टिया शूरवीर ने कभी मनुस्मृति को देखा तक नहीं है। मैंने उससे पूछा अच्छा यह बताओ मनुस्मृति कौनसी भाषा में है? वह बोला ब्राह्मणों की मृत भाषा संस्कृत। मैंने पूछा अच्छा अब यह बताओ कि यह जो आपने लिखा यह किस भाषा में है।  वह फिर चुप हो गया। फिर मैंने लिखा यह तुलसीदास की चौपाई है। जो संस्कृत भाषा में नहीं अपितु अवधी भाषा में है। इसका मनुस्मृति से कोई सम्बन्ध नहीं है। मगर कॉपी पेस्टिया शूरवीर मानने को तैयार नहीं था।

 

फिर मैंने मनुस्मृति में नारी जाति के सम्बन्ध में जो प्रमाण दिए गए है, उन्हें लिखा। पाठकों के लिए वही प्रमाण लिख रहा हूँ। आपको भी कोई कॉपी पेस्टिया शूरवीर मिले तो उसका आप ज्ञान वर्धन अवश्य करना।


 मनुस्मृति में नारी जाति:


यत्र नार्य्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु पूज्यन्ते सर्वास्तत्रऽफलाः क्रियाः। मनुस्मृति 3/56


अर्थात जिस समाज या परिवार में स्त्रियों का सम्मान होता है, वहां देवता अर्थात् दिव्यगुण और सुख़-समृद्धि निवास करते हैं और जहां इनका सम्मान नहीं होता, वहां अनादर करने वालों के सभी काम निष्फल हो जाते हैं।


पिता, भाई, पति या देवर को अपनी कन्या, बहन, स्त्री या भाभी को हमेशा यथायोग्य मधुर-भाषण, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि से प्रसन्न रखना चाहिए और उन्हें किसी भी प्रकार का क्लेश नहीं पहुंचने देना चाहिए। – मनुस्मृति 3/55


जिस कुल में स्त्रियां अपने पति के गलत आचरण, अत्याचार या व्यभिचार आदि दोषों से पीड़ित रहती हैं। वह कुल शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और जिस कुल में स्त्री-जन पुरुषों के उत्तम आचरणों से प्रसन्न रहती हैं, वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है। – मनुस्मृति 3/57


जो पुरुष, अपनी पत्नी को प्रसन्न नहीं रखता, उसका पूरा परिवार ही अप्रसन्न और शोकग्रस्त रहता है और यदि पत्नी प्रसन्न है तो सारा परिवार प्रसन्न रहता है। – मनुस्मृति 3/62


पुरुष और स्त्री एक-दूसरे के बिना अपूर्ण हैं, अत: साधारण से साधारण धर्मकार्य का अनुष्ठान भी पति-पत्नी दोनों को मिलकर करना चाहिए। – मनुस्मृति 9/96


ऐश्वर्य की कामना करने हारे मनुष्यों को योग्य है कि सत्कार और उत्सव के समयों में भूषण वस्त्र और भोजनादि से स्त्रियों का नित्यप्रति सत्कार करें। – मनुस्मृति

पुत्र-पुत्री एक समान। आजकल यह तथ्य हमें बहुत सुनने को मिलता है।  मनु सबसे पहले वह संविधान निर्माता है जिन्होंने  पुत्र-पुत्री की समानता को घोषित करके उसे वैधानिक रुप दिया है – ‘‘पुत्रेण दुहिता समा’’ (मनुस्मृति 9/130) अर्थात् – पुत्री पुत्र के समान होती है।


पुत्र-पुत्री को पैतृक सम्पत्ति में समान अधिकार मनु ने माना है।  मनु के अनुसार पुत्री भी पुत्र के समान पैतृक संपत्ति में भागी है। यह प्रकरण मनुस्मृति के 9/130 9/192 में वर्णित है।


आज समाज में बलात्कार, छेड़खानी आदि घटनाएं बहुत बढ़ गई है।  मनु नारियों के प्रति किये अपराधों जैसे हत्या, अपहरण, बलात्कार आदि के लिए कठोर दंड, मृत्युदंड एवं देश निकाला आदि का प्रावधान करते है। सन्दर्भ मनुस्मृति  8/323,9/232,8/342

नारियों के जीवन में आनेवाली प्रत्येक छोटी-बडी कठिनाई का ध्यान रखते हुए मनु ने उनके निराकरण हेतु स्पष्ट निर्देश दिये है।


पुरुषों को निर्देश है कि वे माता, पत्नी और पुत्री के साथ झगडा न करें।  मनुस्मृति 4/180  इन पर मिथ्या दोषारोपण करनेवालों, इनको निर्दोष होते हुए त्यागनेवालों, पत्नी के प्रति वैवाहिक दायित्व न निभानेवालों के लिए दण्ड का विधान है। – मनुस्मृति 8/274, 389, 9/4


मनु की एक विशेषता और है, वह यह कि वे नारी की असुरक्षित तथा अमर्यादित स्वतन्त्रता के पक्षधर नहीं हैं और न उन बातों का समर्थन करते हैं जो परिणाम में अहितकर हैं। इसीलिए उन्होंने स्त्रियों को चेतावनी देते हुए सचेत किया है कि वे स्वयं को पिता, पति, पुत्र आदि की सुरक्षा से अलग न करें, क्योंकि एकाकी रहने से दो कुलों की निन्दा होने की आशंका रहती है। मनुस्मृति 5/149, 9/5- 6 इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि मनु स्त्रियों की स्वतन्त्रता के विरोधी है| इसका निहितार्थ यह है कि नारी की सर्वप्रथम सामाजिक आवश्यकता है – सुरक्षा की।  वह सुरक्षा उसे, चाहे शासन-कानून प्रदान करे अथवा कोई पुरुष या स्वयं का सामर्थ्य।

 

उपर्युक्त विश्‍लेषण से हमें यह स्पष्ट होता है कि मनुस्मृति की व्यवस्थाएं स्त्री विरोधी नहीं हैं।  वे न्यायपूर्ण और पक्षपातरहित हैं।  मनु ने कुछ भी ऐसा नहीं कहा जो निन्दा अथवा आपत्ति के योग्य हो। 

 

Featured image courtesy: Newsgram and Google.

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Dr. Vivek Arya

Dr Vivek Arya is a child specialist by profession. He writes on Vedic philosophy and History and draws inspiration from Swami Dayanand. Admin facebook.com/arya.samaj page on Facebook.
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