केरल के इतिहास: कोझिकोड, मल्लपुरम और वायनाड में हिन्दू अल्पसंख्यक कैसे हुई

Kashmir to Kerala

आजकल केरल का वायनाड चर्चा में है उत्तर भारत में रहने वाले लोगों को यह संभवत प्रथम बार ज्ञात हुआ कि केरल में एक ऐसा भूभाग है जहाँ पर अहिन्दू (मुस्लिम +ईसाई) जनसँख्या हिन्दुओं से अधिक हैं। बहुत कम हिन्दुओं को यह ज्ञात होगा कि उत्तरी केरल के कोझिकोड, मल्लपुरम और वायनाड के इलाके दशकों पहले ही हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके थे। इस भूभाग में हिन्दू आबादी कैसे अल्पसंख्यक हुई? इसके लिए केरल के इतिहास को जानना आवश्यक हैं।

 

1. केरल में इस्लाम का आगमन अरब से आने वाले नाविकों के माध्यम से हुआ। केरल के राजपरिवार ने अरबी नाविकों की शारीरिक क्षमता और नाविक गुणों को देखते हुए उन्हें केरल में बसने के लिए प्रोत्साहित किया। यहाँ तक की ज़मोरियन राजा ने स्थानीय मलयाली महिलाओं के उनके साथ विवाह करवाए। इन्हीं मुस्लिम नाविकों और स्थनीय महिलाओं की संतान मपिल्ला/ मापला/मोपला अर्थात भांजा कहलाई। ज़मोरियन राजा ने दरबार में अरबी नाविकों को यथोचित स्थान भी दिया। मुसलमानों ने बड़ी संख्या में राजा की सेना में नौकरी करना आरम्भ कर दिया। स्थानीय हिन्दू राजाओं द्वारा अरबी लोगों को हर प्रकार का सहयोग दिया गया। कालांतर में केरल के हिन्दू राजा चेरुमन ने भारत की पहले मस्जिद केरल में बनवाई। इस प्रकार से केरल के इस भूभाग में मुसलमानों की संख्या में वृद्धि का आरम्भ हुआ। उस काल में यह भूभाग समुद्री व्यापार का बड़ा केंद्र बन गया।

 

2. केरल के इस भूभाग पर जब वास्को दी गमा ने आक्रमण किया तो उसकी गरजती तोपों के समक्ष राजा ने उससे संधि कर ली। इससे समुद्री व्यापार पर पुर्तगालियों का कब्ज़ा हो गया और मोपला मुसलमानों का एकाधिकार समाप्त हो गया। स्थानीय राजा के द्वारा संरक्षित मोपला उनसे दूर होते चले गए। व्यापारी के स्थान पर छोटे मछुआरे आदि का कार्य करने लगे। उनका सामाजिक दर्जा भी कमतर हो गया। उनकी आबादी मुलत तटीय और ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता में जीने लगी।

 

3. केरल के इस भूभाग पर जब टीपू सुल्तान की जिहादी फौजों ने आक्रमण किया तब स्थानीय मोपला मुसलमानों ने टीपू सुल्तान का साथ दिया। उन्होंने हिन्दुओं पर टीपू के साथ मिलकर कहर बरपाया। यह इस्लामिक साम्राज्यवाद की मूलभावना का पालन करना था। जिसके अंतर्गत एक मुसलमान का कर्त्तव्य दूसरे मुसलमान की इस्लाम के नाम पर सदा सहयोग करना नैतिक कर्त्तव्य हैं। चाहे वह किसी भी देश, भूभाग, स्थिति आदि में क्यों न हो। टीपू की फौजों ने बलात हिन्दुओं का कत्लेआम, मतांतरण, बलात्कार आदि किया। टीपू के दक्षिण के आलमगीर बनने के सपने को पूरा करने के लिए यह सब कवायद थी। इससे इस भूभाग में बड़ी संख्या में हिन्दुओं की जनसंख्या में गिरावट हुई। मुसलमानों के संख्या में भारी वृद्धि हुई क्यूंकि बड़ी संख्या में हिन्दू केरल के दूसरे भागों में विस्थापित हो गए।

 

4. अंग्रेजी काल में टीपू के हारने के बाद अंग्रेजों का इस क्षेत्र पर अधिपत्य हो गया। मोपला मुसलमान अशिक्षित और गरीब तो था। पर उसकी इस्लाम के प्रचार प्रसार के उद्देश्य को वह भूला नहीं था। 1919 में महात्मा गाँधी द्वारा तुर्की के खलीफा की सल्तनत को बचाने के लिए मुसलमानों के विशुद्ध आंदोलन को भारत के स्वाधीनता संग्राम के साथ नत्थी कर दिया गया। उनका मानना था कि इस सहयोग के बदले मुसलमान भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ उनका साथ देंगे। गाँधी जी के आह्वान पर हिन्दू सेठों ने दिल खोलकर धन दिया, हिन्दुओं ने जेलें भरी, लाठियां खाई। मगर खिलाफत के एक अन्य पक्ष को वह कभी देख नहीं पाए। इस आंदोलन ने मुसलमानों को पूरे देश में संगठित कर दिया। इसका परिणाम यह निकला कि इस्लामिक साम्राज्यवाद के लक्ष्य की पूर्ति में उन्हें अंग्रेजों के साथ साथ हिन्दू भी रूकावट दिखने लगे।

 

1921 में इस मानसिकता को परिणीति मोपला दंगों के रूप में सामने आयी। मोपला मुसलमानों के एक अलीम के यह घोषणा कर दी कि उसे जन्नत के दरवाजे खुले नजर आ रहे हैं। जो आज के दिन दीन की खिदमत में शहीद होगा वह सीधा जन्नत जायेगा। जो काफ़िर को हलाक करेगा वह गाज़ी कहलायेगा। एक गाज़ी को कभी दोज़ख का मुख नहीं देखना पड़ेगा। उसके आहवान पर मोपला भूखे भेड़ियों के समान हिन्दुओं की बस्तियों पर टूट पड़े। टीपू सुल्तान के समय किये गए अत्याचार फिर से दोहराये गए। अनेक मंदिरों को भ्रष्ट किया गया। हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनाया गया, उनकी चोटियां काट दी गई। उनकी सुन्नत कर दी गई। मुस्लिम पोशाक पहना कर उन्हें कलमा जबरन पढ़वाया गया। जिसने इंकार किया उसकी गर्दन उतार दी गई। ध्यान दीजिये कि इस अत्याचार को इतिहासकारों ने अंग्रेजी राज के प्रति रोष के रूप में चित्रित किया हैं जबकि यह मज़हबी दंगा था। 2021 में इस दंगे के 100 वर्ष पूरे होंगे।

 

अंग्रेजों ने कालांतर में दोषियों को पकड़ कर दण्डित किया मगर तब तक हिन्दुओं की व्यापक क्षति हो चुकी । ऐसे में जब हिन्दु समाज की सुध लेने वाला कोई नहीं था। तब उत्तर भारत से उस काल की सबसे जीवंत संस्था आर्यसमाज के कार्यकर्ता लाहौर से उठकर केरल आये। उन्होंने सहायता डिपों खोलकर हिन्दुओं के लिए भोजन का प्रबंध किया। सैकड़ों की संख्या में बलात मुसलमान बनाये गए हिन्दुओं को शुद्ध किया गया। आर्यसमाज के कार्य को समस्त हिन्दू समाज ने सराहा। विडंबना देखिये अंग्रेजों की कार्यवाही में जो मोपला दंगाई मारे गए अथवा जेल गए थे उनके कालांतर में केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने क्रांतिकारी घोषित कर दिया। एक जिहादी दंगे को भारत के स्वाधीनता संग्राम के विरुद्ध संघर्ष के रूप में चित्रित कर मोपला दंगाइयों की पेंशन बांध दी गई। कम्युनिस्टों ने यह कुतर्क दिया कि मोपला मुसलमानों ने अंग्रेजों का साथ देने धनी हिन्दू जमींदारों और उनके निर्धन कर्मचारियों को दण्डित किया था। कम्युनिस्टों के इस कदम से मोपला मुसलमानों को 1947 के बाद खुली छूट मिली। मोपला 1947 के बाद अपनी शक्ति और संख्याबल को बढ़ाने में लगे रहे। उन्होंने मुस्लिम लीग के नाम से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नाम से अपना राजनीतिक मंच बनाया।

 

5. 1960 से 1970 के दशक में विश्व में खाड़ी देशों के तेल निर्यात ने व्यापक प्रभाव डाला। केरल के इस भूभाग से बड़ी संख्या में मुस्लिम कामगार खाड़ी देशों में गए। उन कामगारों ने बड़ी संख्या में पेट्रो डॉलर खाड़ी देशों से भारत भेजे। उस पैसे के साथ साथ इस्लामिक कट्टरवाद भी देश ने आयात किया। उस धन के बल पर बड़े पैमाने पर जमीने खरीदी गई। मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हुआ। स्थानीय वेशभूषा छोड़कर मोपला मुसलमान भी इस्लामिक वेशभूषा अपनाने लगे। मज़हबी शिक्षा पर जोर दिया गया। जिसका परिणाम यह निकला कि इस इलाके का निर्धन हिन्दू अपनी जमीने बेच कर यहाँ से केरल के अन्य भागों में निकल गया। बड़ी संख्या में मुसलमानों ने हिन्दू लड़कियों से विवाह भी किये। इस्लामिक प्रचार के प्रभाव, धन आदि के प्रलोभन में अनेक हिन्दुओं ने स्वेच्छा से इस्लाम को स्वीकार भी किया। केरल से छपने वाले सालाना सरकारी गजट में हम ऐसे अनेक उदहारणों को पढ़ सकते हैं। इस धन के प्रभाव से संगठित ईसाई भी अछूते नहीं रहा। असंगठित हिन्दू समाज तो इस प्रभाव को कैसे ही प्रभावहीन करता। ऐसी अवस्था में इस भूभाग का मुस्लिम बहुल हो जाना स्वाभाविक ही तो है।

 

वर्तमान स्थिति यह है कि धीरे धीरे इस इलाके में इस्लामिक कट्टरवाद बढ़ता गया। इन मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व मुस्लिम लीग करती हैं। जी हाँ वही मुस्लिम लीग जो 1947 से पहले पाकिस्तान के बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी। हिन्दुओं का केरल में असंगठित होने के कारण कोई राजनीतिक रसूख नहीं हैं। वे कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के मध्य विभाजित हैं। जबकि ईसाई और मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि नेताओं से खूब मोल भाव कर वोट के बदले अपनी मांगें मनवाते हैं। इसलिए केरल की जनसँख्या में आज भी सबसे अधिक होने के बाद भी जाति, सामाजिक हैसियत, धार्मिक विचारों में विभाजित होने के कारण हिन्दु अपने ही प्रदेश में एक उपेक्षित है। यही कारण है कि शबरीमाला जैसे मुद्दों पर केरल की सरकार हिन्दुओं की अपेक्षा कर उनके धार्मिक मान्यताओं को भाव नहीं दे रही हैं। जिन अरबी मुसलमानों को केरल के हिन्दू राजा ने बसाया था। उन्हें हर प्रकार से संरक्षण दिया। उन्हीं मोपला की संतानों ने हिन्दुओं को अपने ही प्रदेश के इस भूभाग में अल्पसंख्यक बनाकर उपेक्षित कर दिया। समस्या यह है कि वर्तमान में इस बिगड़ते जनसँख्या समीकरण से निज़ात पाने के लिए हिन्दुओं की कोई दूरगामी नीति नहीं हैं। हिन्दुओं को अब क्या करना है। इस पर आत्मचिंतन करने की तत्काल आवश्यकता है। अन्यथा जैसा कश्मीर में हुआ वैसा ही केरल में न हो जाये।

 

सलंग्न चित्र- केरल में एक रैली में मुस्लिम लीग समर्थक.

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Dr. Vivek Arya

Dr Vivek Arya is a child specialist by profession. He writes on Vedic philosophy and History and draws inspiration from Swami Dayanand. Admin facebook.com/arya.samaj page on Facebook.
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